राम नाम कि महिमा
एक बार की बात है एक महात्मा रात्रि के समय ‘श्रीराम’ नाम का जप करते हुये किसी घने जंगल से गुजरे । रात्रि होने के कारण वे मार्ग से भूल गये लिकेन यह सोचकर आगे बढ़ने लगे कि जहाँ रामजी ले जाये । चलते-चलते उन्हें दूर दीपमालाओं जगमगाती दिखाई पड़ी । वे उसी ओर चल दिये । वहाँ पहुँचकर देखा कि एक वट वृक्ष के नीचे बहुत से स्त्री-पुरुष नाच रहे हैं और उनके हाथों में तरह-तरह के वाद्य यंत्र हैं । नजदीक से देखने पर महात्माजी भाँप गये कि वे लोग प्रेतात्मा हैं । तभी एक प्रेतात्मा ने उनका हाथ पकड़ा और उन्हें अपने राजा के पास ले गया । प्रेतराज ने महात्मा से कहा- “तुम इस ओर क्यों आये ? हमारी प्रजा आज मदमस्त है तुम्हें इस बात का ध्यान नहीं रहा। तुम्हें मौत से दर नहीं लगता ?”
महात्माजी ने मुस्कराते हुये कहा- “मौत का डर ? और मुझे ? जीसे जीने का मोह होता है, उसे मौत का डर होता है ।हम साधुओं के लिये तो मौत आनंद का विषय है। यह तो देहपरिवर्तन है जो प्रारब्धकर्म के बिना किसी से नहीं हो सकता।”
प्रेतराज ने महात्माजी से पूछा- “तुम जानते हो; हम कौन है ? ”
महात्माजी ने कहा- “मैं अनुमान कर सकता हूँ आपलोग प्रेतात्मा है ।”
महात्मा की बात सुनकर प्रेतराज ने कहा-“ यह उत्सव मेरी पुत्री के शादी के खुशी में हो रहा है । बहुत दिनों से मैं अपनी पुत्री के लिये उचितवर ढ़ूँढ़ रहा था । पास के हीं नगर में एक गुजरमल नामक सेठ रहते हैं । उनका पुत्र बहुत हीं बीमार है । कल उसकी मृत्यु होनेवाली है, वह अपने बुरे कर्मों के कारण मरने के बाद प्रेत योनी को प्राप्त करेगा । तब उसी से मेरी पुत्री का विवाह होगा ।”
यह सुनने के बाद कुछ देर उसी स्थान पर ठहर कर महात्मा जी नगर की ओर चल पड़े । नगर पहुँचते- पहुँचते सुबह हो गयी । नगर पहुँचकर महात्मा ने एक व्यक्ति से सेठ गुजरमल के घर का पता पूछा । तब उस व्यक्ति ने पता बताते हुये कहा कि उस सेठ का लड़का बहुत गलत संगत और शराब-जुआ के कारण बहुत बीमार है । इतना सुनकर महात्माजी उस सेठ के घर की ओर चल पड़े । सेठ के घर पहुँचकर वे सेठ के पुत्र के सिरहाने जाकर खड़े हो गये और उस लड़्के को सम्बोधित करते हुये बोले- “बेटा , तुम मेरे सात-साथ ‘राम-राम’ नाम का जप करो ।” तब सेठ के पुत्र ने महात्माजी के कहे अनुसार ‘राम-राम’ का जप शुरु कर दिया और शाम होने के साथ ही उसकी मौत हो गई । महात्माजी भी वहाँ से प्रस्थान कर गये ।
रात को महात्माजी फिर उसी जंगल से होकर गुजरे, इस बार उन्होंने देखा कि कल रात्रि को जहाँ उत्सव हो रहा था वहाँ सन्नाटा पसरा है, सभी प्रेतात्मायें बहहुत दुखी और उदास है । यह देखकर महात्माजी कुछ और निकट गये। महात्मा को देखते हीं प्रेतराज चिल्ला पड़ा – “अरे महात्मा , तुम्हारे कारण हीं आज मुझे यह दिन देखना पड़ा । तुमने उस सेठ के लड़के को राम नाम का जप करवाकर मुक्ति दिला दी । अब मेरी पुत्री कुँवारी हीं रहेगी। ”
महात्माजी:- क्या सिर्फ एक बार नाम जप लेने से वह प्रेतयोनी से छूट गया? आप सच कहते हो?
प्रेतराजः हाँ भाई ! जो मनुष्य राम नामजप करता है वह राम नामजप के प्रताप से कभी हमारी योनि को प्राप्त नहीं होता । भगवन्नानम जप में नरकोद्धारणी शक्ति है। प्रेत के द्वारा रामनाम का यह प्रताप सुनकर महात्मामजी प्रेमाश्रु बहाते हुए भाव समाधि में लीन हो गये। उनकी आँखे खुलीं तब वहाँ प्रेत-
समाज नहीं था, बाल सूर्य की सुनहरी किरणें वटवृक्ष को शोभायमान कर रही थीं।