षट्तिला एकादशी व्रत कथा (Page 4/5)

बहुत पुरानी बात है, मृत्युलोक में एक ब्राह्मणी रहती थी । वह हमेशा व्रत-उपवास किया करती थी।
लेकिन उसने कभी भी देवताओं तथा ब्राह्मणों के निमित्त अन्न दान नहीं किया था। एव बार वह ब्राह्मणी एक मास तक व्रत करती रही।
तब श्री नारायण ने सोचा कि इस ब्राह्मणी ने व्रत तथा उपवास से अपने शरीर को तो पवित्र कर लिया है जिससे इसे बैकुण्ठ धाम मिल जायेगा लेकिन अन्न दान के बिना जीव की तृप्ति असम्भव है।
यह सोचकर श्री हरि ने साधु का वेष बनाकर उस ब्राह्मणी से अन्न की भिक्षा मांगी।
तब ब्राह्मणी ने साधु रूपी श्री नारायण को एक मिट्टी का टुकड़ा भिक्षा के रूप मे दे दिया। श्री नारायण उस टुकड़े को लेकर अपने धाम को लौट गये।
कुछ समय पश्चात उस ब्राह्मणी की मृत्यु हो गई।
मिट्टी के टुकड़े के प्रभाव से उसे स्वर्ग में एक वृक्ष के नीचे रहने के लिये घर मिला। लेकिन उस घर में अन्य कोई वस्तु नहीं थी।
यह देखकर वह ब्राह्मणी घबराते हुए श्री नारायण के पास पहुँची और बोली-“ हे प्रभु! मैंने जो व्रत-उपवास किये थे उस कारण से मुझे स्वर्ग में रहने के लिये घर तो मिला ,लेकिन वह घर खाली क्यूँ है ? कृपा कर के इसका काराण बतलायें? ”