षट्तिला एकादशी व्रत कथा (Page 5/5)

तब श्री नारायण ने उस ब्राह्मणी से कहा- “तुम अपने घर जाओ। जब देव- स्त्रियां तुमसे मिलने आये, तब उनसे षट्तिला एकादशी व्रत का विधान तथा महात्म्य पूछना और जब तक वे तुम्हें विधान न बताए, तब तक दरवाजा नहीं खोलना ।”
प्रभु श्री हरि की बातें सुनकर वह ब्राह्मणी अपने घर को लौट आई।
जब देव-स्त्रियां उससे मिलने आई तो उस ब्राह्मणी ने कहा- “हे देव-स्त्रियां! आपको मेरा नमस्कार है। यदि आप मुझे देखने आई है तो कृपा करके मुझे षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान और महात्म्य बतायें। तभी मैं अपना द्वार खोलूँगी। ”
उस ब्राह्मणी से ऐसा वचन सुनकर देव-स्त्रियों ने कहा – “यदि तुम्हारी इच्छा षट्तिला एकादशी के विधान तथा महात्म्य को सुनने की है, तो ध्यानपूर्वक सुनो ”
ऐसा कहकर देव-स्त्रियों ने उसे षट्तिला एकादशी के व्रत का विधान महात्म्य सहित उस ब्राह्मणी को सुनाया।
उसके बाद उस ब्राह्मणी ने अपना द्वार खोल दिया और सारी देव-स्त्रियां उससे मिल के अपने-अपने स्थान को लौट गई।
उस ब्राह्मणी ने देव-स्त्रियों के कथनानुसार षटतिला एकादशी का व्रत विधि-विधान के साथ किया ,जिसके फल्स्वरूप उसका घर धन-धान्य से भर गया।
अत: हे पार्थ! मनुष्यों को षटतिला एकादशी का उपवास जरूर करना चाहिये। षटतिला एकादशी व्रत के करने से हर प्रकार के रोगों का नाश होता है और सभी जन्म-जन्मांतर के पाप कट जाते है।

बोलो श्री विष्णु भगवान की जय ।