षट्तिला एकादशी व्रत कथा (Page 3/5)

अर्थ : “सच्चिदानन्दस्वरूप श्रीकृष्ण! आप बड़े दयालु हैं। हम आश्रयहीन जीवोंके आप आश्रयदाता होइये।
पुरुषोत्तम! हम संसार –समुद्र में डूब रहे हैं, आप हमपर प्रसन्न होइये।
कमलनयन! आपको नमस्कार है।
विश्वभावन ! आपको नमस्कार है।
सुब्रह्मण्य! महापुरुष! सबके पूर्वज! आपको नमस्कार है।
जगत्पते ! आप लक्ष्मी जी के साथ मेरा दिया हुआ अर्घ्य स्वीकार करें।”
तत्पश्चात् ब्राह्मण की पूजा करे। उसे जल का घड़ा दान करे। साथ ही छाता,जूता और वस्त्र भी दे।
दान करते हुए ऐसा कहे- ‘इस दान के द्वारा श्रीकृष्ण मुझपर प्रसन्न हो। ’ अपनी शक्ति के अनुसार श्रेष्ठ ब्राह्मणों को काली गौ दान करे।
द्वीजश्रेष्ठ! विद्वान पुरुष को चाहिये कि वह तिल से भरा हुआ पात्र भी दान करे।
उन तिलों के बोने पर उनसे जितनी शाखाएँ पैदा हो सकती हैं, उतने हजार वर्षों तक वह स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।
तिल से स्नान करे, तिल का उबटन लगायें, तिल से होम करे, तिल मिलाया हुआ जल पिये, तिल का दान करे और तिलको भोजन के काम में ले।
इस प्रकार छह कामों में तिल का उपयोग करने से यह एकादशी ‘षट्तिला’ कहलाते है, जो सब पापों का नाश करती है।
इतना कहकर पुलस्त्य ऋषि ने कहा- 'अब मैं एकादशी की कथा सुनाता हूँ-