रविवार व्रत कथा-श्रीकृष्ण-पुत्र शाम्ब का कुष्ठ निवारण

द्वापर युग में एक बार महर्षि दुर्वासा के मन में द्वारकाधीश भगवान श्रीकृष्ण की द्वारकापुरी देखने के प्रबल इच्छा हुई। अपनी इच्छा को रोक ना सकने के कारण दुर्वासा मुनि ने एक दिन द्वारका नगरी में प्रवेश किया।
उनके आगमन का समाचार पाकर श्रीकृष्ण उनका आदर-सत्कार करने के पश्चात् उन्हें राजमहल में लिवा लाये। वहाँ भोजनोपरांत ऋषि के साथ श्रीकृष्णजी बात-चीत करने लगे। वार्ता के मध्य श्रीकृष्णजी के पुत्र शाम्ब वहाँ आ पहुँचे और मुनि का उपहास करने लगे। महाक्रोधी दुर्वासा मुनि श्रीकृष्णजी के आचरण से प्रसन्न रहने के कारण उस उपहास पर ध्यान ना देकर शांत मुद्रामें बैठे रहे।परंतु शाम्ब द्वारा पुन: उपहास करने की चेष्टा से मुनि का क्रोध उबल पड़ा। उन्होंने तत्क्षण ही शाम्ब को कोढ़ी होने का शाप दे डाला।

Story of Sunday fastा-Prevention of Shri Krishna-son's Shamb's leprosy

Once in Dwapar Yuga, there was a strong desire in the mind of Maharishi Durvasa to see Dwarkadhish God Krishna in Dwarkapuri. He was unable to stop his desire, So one day Durvasa Muni entered in the Dwarka city .
After receiving the news of his arrival, Shri Krishna brought him to the palace after paying him respect. Sri Krishna started talking with the sage after meal. Shri Krishna's son Shamb arrived there and started mocking the sage during the conversation. Great angered Durvasa Muni being pleased with the conduct of Shrikrishna ji, so he kept sitting silently and ignoring the ridicule. But Muni's anger boiled over Shamb's attempt to ridicule him again. He immediately cursed Shamb to be a leper.