रमा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 2/6)
चंद्रभागा बोली- “ प्रभो ! मेरे पिता के घर पर तो एकादशी को कोई भी भोजन नहीं कर सकता। हाथी, घोड़े , हाथियों के बच्चे तथा अन्यान्य पशु भी अन्न, घास तथा जल तक का आहार नहीं करने पाते ; फिर मनुष्य एकादशी के दिन कैसे भोजन कर सकते हैं ।
प्राणनाथ ! यदि आप भोजन करेंगे तो आपकी बड़ी निंदा होगी। इस प्रकार मन में विचार करके अपने चित्त को दृढ़ किजिये।”
शोभन ने कहा- “ प्रिये ! तुम्हारा कहना सत्य है , मैं भी आज उपवास करूँगा । दैव का जैसा विधान है वैसा ही होगा।”
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं- इस प्रकार दृढ़ निश्चय करके शोभन ने व्रत के नियम का पालन किया।
क्षुधा से उनके शरीर में पीड़ा होने लगी; अत: वे बहुत दुखी हुए। भूख की चिन्ता में पड़े-पड़े सुर्यास्त हो गय। रात्रि आयी जो हरिपूजापरायण तथा जागरण में आसक्त वैष्णव मनुष्यों को हर्ष बढ़ानेवाली थी ; परन्तु वही रात्रि शोभन के लिये अत्यन्त दु:खदायिनी हुई ।