रमा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 3/6)
सुर्योदय होते-होते उनका प्राणान्त हो गया। राजा मुचुकुनन्द ने राजोचित काष्ठों से शोभन का दाह-संस्कार कराया। चन्द्रभागा पति का परलौकिक कर्म करके पिता के ही घर पर रहने लगी ।
नृपश्रेष्ठ ! ‘ रमा ’ नामक एकादशी के व्रत के प्रभाव से शोभन मन्दराचल के शिखरपर बसे हुए परम रमणीय देवपुर को प्राप्त हुआ। वहाँ शोभन द्वीतीय कुबेर की भाँति शोभा पाने लगा।
राजा मुचुकुन्द के नगर में सोमशर्मा नाम से विख्यात एक ब्राह्मण रहते थे, वे तीर्थ यात्रा के प्रसंग से घूमते हुए कभी मन्दराचल पर्वत पर गये। वहाँ उन्हें शोभन दिखायी दिये। राजा के दामाद को पहचान कर वे उनके समीप गये। शोभन भी उस समय द्वीजश्रेष्ठ सोमशर्मा को आया जान शीघ्र ही आसन से उठकर खड़े हो गये और उन्हें प्रणाम किया।
फिर क्रमश: अपने श्वसुर राजा मुचुकुन्द , प्रिय पत्नी चन्द्रभागा का तथा समस्त नगर का कुशल समाचार पूछा ।