परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Page ५/६)

ऋषि बोले- “ राजन ! यह सब युगों मे उत्तम सत्ययुग है। इसमें सब लोग परमात्मा के चिन्तन में लगे रहते हैं। तथा इसा समय धर्म अपने चारों चरणों से युक्त होता है।
इस युग में केवल ब्राह्मण ही तपस्वी होते हैं , दूसरे लोग नहीं। किन्तु महाराज ! तुम्हारे राज्य में शूद्र तपस्या करता है; इसी कारण मेघ पानी नहीं बरसाते। तुम इसके प्रतीकार का यत्न करो ; जिससे यह अनावृष्टि दोष शान्त हो जाय ।”
राजा ने कहा- “मुनिवर ! एक तो यह तपस्या में लगा है , दूसरे निरपराध है; अत: मैं इसका अनीष्ट नहीं करूँगा। आप उक्त दोष को शान्त करनेवाले किसी धर्म का उपदेश किजिये। ”
ऋषि बोले- “राजन ! यदि ऐसी बात है तो एकादशी व्रत करो। भाद्रपद मास के शुक्ल पक्ष में जो ‘परिवर्तिनी’ नाम से विख्यात एकादशी होती है, उसके व्रत के प्रभाव से निश्चय ही उत्तम वृष्टि होगी। नरेश! तुम अपनी प्रजा और परिजनोंके साथ इसका व्रत करो। ”