परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा (Page ६/६)
ऋषि का यह वचन सुनकर राजा अपने राज्य को लौट आये। उन्होंने चारों वर्णों के समस्त प्रजाओं के साथ भादों के शुक्लपक्ष की ‘परिवर्तिनी’ एकादशी का व्रत किया।
इस प्रकार व्रत करने पर मेघ पानी बरसाने लगे। पृथ्वी जल से आप्लावित हो गयी और हरी-भरी खेती से सुशोभित होने लगी । उस व्रत के प्रभव से सब लोग सुखी हो गये।
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं – “राजन! इस कारण इस उत्तम व्रत का अनुष्ठान अवश्यकरना चाहिये। ‘पद्मा’ एकादशी के दिन जल से भरे हुए घड़े को वस्त्र से ढ़ककर दही और चावल के साथ ब्राह्मण को देना कहाहिये, साथ ही छाता और जूता भी देने चाहिये। दान करते समय निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करना चाहिये- ”
नमो नमस्ते गोविन्द बुधश्रवणसंशक ॥
अघौघसंक्षयंकृत्वा सर्वसौख्यप्रदो भव ।
भुक्तिमुक्ति प्रदश्चैव लोकानां सुखदायक: ॥
अर्थ: [बुधवार और श्रवण नक्षत्र के योग से युक्त द्वादशी दिन] बुद्धश्रवण नाम धारण करने वाले भगवान गोविन्द! आपको नमस्कार है, नमस्कार है; मेरी पापराशिका नाश करके आप मुझे सब प्रकार के सुख प्रदान करें । आप पुण्यात्माजनों को भोग और मोक्षप्रदान करनेवाले तथा सुखदायक हैं ।
राजन ! इसके पढ़ने और सुनने से मनुष्य सब पापों से मुक्त हो जाता है।