परिवर्तिनी एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page ४/६)

ऐसा निश्चय करके राजा मान्धाता इने-गिने व्यक्तियों को साथ ले विधाता को प्रणाम करके सघन वन की ओर चल दिये।
वहँ जाकर मुख्य-मुख्य मुनियों और तपस्वियों के आश्रमों पर घूमते फिरे। एक दिन उन्हें ब्रह्मपुंज अङ्गिरा ऋषि के दर्शन हुए।
उनपर दृष्टि पड़ते ही राजा हर्षमें भरकर अपने वाहन से उतर पड़े और इंद्रियों को वश में रखते हुए दोनों हाथ जोड़कर उन्होंने मुनिके चरणों में प्रणाम किया। मुनिने भी ‘स्वस्ति’ कहकर राजा का अभिनन्दन किया और उनके राज्य के सातों अंगों की कुशल पूछी।
राजा ने अपनी कुशल बताकर मुनि के स्वास्थ्य का समाचार पूछा। मुनि ने राजा को आसन और अर्घ्य दिया। उन्हें ग्रहण करके जब वे मुनि के समीप बैठे तो उन्होंने इनके आगमन का कारण पूछा।
तब राजा ने कहा- “भगवन! मैं धर्मानुकूल प्रणाली से पृथ्वी का पालन कर रहा था। फिर भी मेरे राज्य में वर्षा का अभाव हो गया। इसका क्या कारण है इस बात को मैं नहीं जानता। ”