निर्जला एकादशी व्रत कथा (Page 5/6)

कुन्तीनन्दन ! निर्जला एकादशी के दिन श्रद्धालु स्त्री- पुरुषों के लिये जो विशेष दान और कर्तव्य विदित है, उसे सुनो- उस दिन जल में शयन करनेवाले भग्वान विष्णु का पूजन और जलमयी धेनु का दान करना चाहिये।
अथवा प्रत्यक्ष धेनु या घृतमयी धेनु का दान उचित है। पर्याप्त दक्षिणा और भाँति-भाँति के मिष्ठानों द्वारा यत्नपूर्वक ब्राह्मणों को संतुष्ट करना चाहिये ।
ऐसा करने से ब्राह्मण अवश्य संतुष्ट होते हैं और उनके संतुष्ट होने पर श्री हरि मोक्ष प्रदान करते हैं।
जिन्होंने शम, दम और दान में प्रवृत हो श्रीहरि को पूजा और रात्रि में जागरण करते हुए इस निर्जला एकादशी का व्रत किया है, उन्होंनी अपने साथ ही बीती हुई सौ पीढ़ीयों को और आनेवाली सौ पीढ़ीयों को भगवान वासुदेव के परम धाम में पहुँचा दिया है।
निर्जला एकादशी के दिन अन्न, वस्त्र, गौ, जल, शैय्या ,सुन्दर आसन,कमण्डलु तथा छाता दान करना चाहिये।
जो श्रेष्ठ एवं सुपात्र ब्राह्मण को जूता दान करता है, वह सोने के विमान पर बैठकर स्वर्गलोक में प्रतिष्ठित होता है।
जो इस एकादशी की महिमा को भक्तिपूर्वक सुनता तथा जो भक्तिपूर्वक वर्णन करता है, वे दोनों स्वर्गलोक को जाते हैं।
चतुर्दशी युक्त अमावस्या को सुर्यग्रहण के समय श्राद्ध करके मनुष्य जिस फल को प्राप्त करता है, वही इसके श्रवण से भी प्राप्त होता है। पहले दंतधावन करके यह नियम लेना चाहिये कि ‘मैं भगवान केशवकी प्रसन्नता के लिये एकादशी को निराहार रहकर आचमन के सिवा दूसरे जल का भी त्याग करूँगा। ’
एकादशी को देवदेवेश्वर भगवान विष्णु का पूजन करना चाहिये। गंध, पुष्प, धूप और सुंदर वस्त्र से विधिपूर्वक पूजन करके जल का घड़ा संकल्प करते हुये निम्नांकित मंत्र का उच्चारण करे:-