निर्जला एकादशी व्रत कथा (Page 6/6)
देवदेव हृषीकेश संसारार्णवतारक ।
उदकुम्भ प्रदानेन नय मां परमां गतिम्॥
अर्थ: संसार सागर से तारनेवाले देवदेव हृषीकेश ! इस जल के घड़े का दान करने से आप मुझे परम गति की प्राप्ति कराइये।
भीमसेन! ज्येष्ठ मास में शुक्लपक्ष की जो शुभ एकादशी होती है, उसका निर्जला व्रत करना चाहिये तथा उस दिन श्रेष्ठ ब्राह्मणों को शक्कर के साथ जल के घड़े का दान करना चाहिये।
ऐसा करने से मनुष्य भगवान विष्णु के समीप पहुँचकर आनन्द का अनुभव करता है।
तत्पश्चात् द्वादशी को ब्राह्मण भोजन कराने के बाद स्वयं भोजन करें।
जो इस प्रकार पूर्ण रूप से पापनाशिनी एकादशी का व्रत करता है, वह सब पापों से मुक्त हो अनामय पद को प्राप्त होता है।
यह सुनकर भीमसेन नी भी इस शुभ एकादशी का व्रत आरम्भ कर दिया ।
तब से यह लोक में ‘पाण्डव- एकादशी’ तथा “भीमसेनी” एकादशी के नाम से विख्यात हुई।