निर्जला एकादशी व्रत कथा (Page 4/6)

अत: निर्जला एकादशी को पूर्ण यत्न करके उपवास करना चाहिये। तुम भी सब पापों की शांति के लिये यत्न के साथ उपवास और श्रीहरि का पूजन करो।
स्त्री हो या पुरुष यदि उसने मेरू पर्वत के बराबर भी महान पाप किया हो तो वह सब एकादशी के प्रभाव से भस्म हो जाता है।
जो मनुष्य उस दिन जल के नियम का पालन करता है, वह पुण्य का भागी होता है, उसे एक-एक पहर में कोटि-कोटि स्वर्णमुद्रा दान करने का फल प्राप्त होता सुना गया है।
मनुष्य निर्जला एकादशी के दिन स्नान, दान , जप, होम आदि जो कुछ भी करता है, वह सब अक्षय होता है, यह भगवान श्री कृष्ण का कथन है।
निर्जला एकादशी को विधिपूर्वक उत्तम रीति से उपवास करके मानव वैष्णवपद को प्राप्त कर लेता है। जो मनुष्य एकादशी के दिन अन्न खाता है, वह पाप भोजन करता है। इस लोक में चाण्डाल के समान है और मरने पर दुर्गति को प[राप्त होता है।
जो ज्येष्ठ के शुक्ल पक्ष में एकादशी को उपवास करके दान देंगे, वे परमपद को प्राप्त होंगे।
जिन्होंने एकादशी को उपवास किया है, वे ब्रह्महत्यारे, शराबी, चोर तथा गुरुद्रोही होनेपर भी सब पातकों से मुक्त हो जाते हैं।