वरुथिनी एकादशी व्रत कथा (Page 2/3)
विद्वान पुरुषों ने कन्यादान को भी अन्नदान के समान बताया है। कन्यादान के तुल्य ही धेनु का दान है- यह साक्षात् भगवान का कथन है।
ऊपर बताये हुए सब दानों से बड़ा विद्यादान है । मनुष्य ‘वरुथिनी’ एकादशी व्रत करके विद्यादान का भी फल प्राप्त कर लेता है ।
जो लोग पाप से मोहित होकर कन्या के धन से जीविका चलाते हैं वे पुण्य का क्षय होने पर यातनामय नरक में जाते हैं।
अत: सर्वथा प्रयत्न करके कन्या के धन से बचना चाहिये- उसे अपने काम में नहीं लाना चाहिये।
जो अपनी शक्ति के अनुसार आभूषणों से विभूषित करके पवित्र भाव से कन्या का दान करता है, उसके पुण्य की संख्या बताने में चित्रगुप्त भी असमर्थ हैं।
वरुथिनी एकादशी करके भी मनुष्य उसी के समान फल प्राप्त करता है ।
व्रत करनेवाला वैष्णव पुरुष दशमी तिथि को काँस, उड़द, मसूर, चना, कोदो, शाक,मधु, दूसरे का अन्न , दो बार भोजन तथा मैथुन – इस दस वस्तुओं का परित्याग कर दें।
एकादशी को जुआ खेलना, नींद लेना, पान खाना, दातुन करना, दूसरों की निंदा करना, चुगली खाना, चोरी, हिंसा, मैथुन , क्रोध तथा असत्य भाषण- इन ग्यारह बातों को त्याग दें।
द्वादशी को काँस, उड़द, शराब, मधु, तेल, पतितों से वार्तालाप, व्यायाम, परदेश गमन, दो बार भूजन, मैथुन, बैल की पीठ पर सवारी और मसूर – इन बारह वस्तुओं का त्याग करें।