पौष संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा Page 4/4

हे राक्षसराज! यदि तुम बलि के बंधन से छूटना चाहते हो तो मेरी बात मानकर संकटनाशक गणेश जी का व्रत करो। प्राचीन काल में वृत्रासुर की हत्या के प्रायश्चित स्वरूप इन्द्र ने इस व्रत को किया था। अत: तुम भी इस संकटनाशक व्रत को करो। बहुत शीघ्र ही तुम्हारा क्लेश दूर होगा। इस प्रकार आदेश देकर ब्रह्मर्षि वन में चले गये और इधर रावण ने व्रत का अनुष्ठान किया। हे देवी! इस व्रत के प्रभाव से रावण तत्काल ही बंधन रहित हो गया और सुखपूर्वक अपना राज्य करने लगा। भगवान कृष्ण कहते है कि हे युधिष्ठिर ! आप भी इस व्रत को किजिए। इस व्रत के प्रभाव से समर में समस्त शत्रुओं का संहार करके आप अपने उत्तम राज्य को प्राप्त करेंगे। कृष्ण जी की बात सुनकर युधिष्ठिर ने विधि पूर्वक पौष कृष्ण चतुर्थी व्रत किया और इस व्रत के प्रभाव से उन्होंने अपने राज्यको पुन: प्राप्त कर लिया।