पद्मनाभ द्वादशी व्रत कथा
सत्ययुग की बात है- भद्राश्व नाम से विख्यात एक शक्तिशाली राजा थे, जिनके नाम पर ‘भद्राश्ववर्ष’ प्रसिद्ध हुआ है। एक बार कभी अगस्त्य मुनि उनके घर आये और कहने लगे- “राजन ! मैं सात रातों तक तुम्हारे घर पर निवास करना चाहता हूँ ।”
राजा भद्राश्व ने सिर झुकाकर मुनि को प्रणाम किया और कहा- “ मुनिवर ! आप अवश्य निवास करें ।” राजा भद्राश्व की सुन्दरी रानी का नाम कान्तिमंती था । उसका तेज ऐसा था मानो बारहों सुर्य एक साथ प्रकाश फैला रहे हों। इसी प्रकार राजा की पाँच सौ सुन्दरियाँ भी थी; जिनका व्रत सन्यमित था । सुन्दर स्वभाववाली वे सौतें दासी की भाँति प्रतिदिन कार्य में संलग्न रहती थीं। कान्तिमती को ही राजा की पटरानी होने का सौभाग्य प्राप्त था।
एक बार उस ( रूप और तेज से सम्पन्न कल्याणमयी कान्तिमती )- पर अगस्त्य मुनि की दृष्टि पड़ी । साथ ही उसके भय से कार्य में तत्पर रहनेवाली उस सुन्दरी सौतों को भी उन्होंने देखा।
राजा भद्राश्व तो रानी कान्तिमती के प्रसन्न मुख को प्रतिक्षण देखता ही रहता था। ऐसी परम सुन्दरी रानी को देखने के कुछ समय बाद अगस्त्य जी आनन्द में विह्वल होकर बोले- “ राजन ! आप धन्य हैं, धन्य हैं ।”
इसी प्रकार दूसरे दिन रानी को देखकर अगस्त्य मुनि ने कहा- “ अरे ! यह तो सारा विश्व वञ्चित रह गया । ”
फिर तीसरे दिन उस रानी को देखकर यों कहने लगे – “अहो ! ये मुर्ख गोविन्द भगवान को भी नहीं जानते , जिन्होंने केवल एक दिन की प्रसन्नता से इस राजा को सब कुछ प्रदान किया था । ”
चौथे दिन अगस्त्य मुनि ने अपने दोनों हाथों को ऊपर उठाकर फिर कहा- ‘जगत्प्रभो ! आपको साधुवाद है , स्त्रियाँ धन्य हैं । ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य! तुम्हें पुन: -पुन: धन्यवाद है । भद्राश्व ! तुम्हें धन्यवाद है । ऐ अगस्त्य ! तुम भी धन्य हो। प्रह्लाद एवं महाव्रती ध्रुव ! तुम सभी धन्य हो ।’
इस प्रकार उच्च स्वर में कहकर अगस्त्य मुनि राजा भद्राश्व के सामने नाचने लगे । फिर तो ऐसे कार्य में संलग्न अगस्त्य मुनि को देखकर रानी सहित उस नरेश ने मुनि से पूछा- “ ब्रह्मन ! आप क्यों इस प्रकार नृत्य कर रहे हैं । ”
मुनिवर अगस्त्य ने कहा- “राजन ! बड़े आश्चर्य की बात है । तुम कितने अज्ञानी हो ; साथ ही तुम्हारा अनुगमन करनेवाले ये मंत्री, पुरोहित और अन्य अनुजीवी भी मूर्ख ही हैं, जो मेरी बात समझ नहीं पाते।”
इस प्रकार अगस्त्य मुनि के कहने पर राजा भद्राश्व ने हाथ जोड़कर कहा- “ ब्रह्मन ! आपके मुख से उच्चरित पहेली को हम नहीं समझ रहे हैं। अत: महाभाग ! यदि आप अनुग्रह करना चाहते हों तो मुझे बताने की कृपा करें”