कुर्म द्वादशी व्रत

पौष मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को कुर्म द्वादशी व्रत होता है । इस व्रत को करनेवाले के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसमें कुछ अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। वह पुरुष संसार चक्र का त्याग कर भगवान श्रीहरिके सनातन-लोक को चला जाता है।उसके पाप तत्कालविलीन हो जाते हैं और वह शोभा तथा लक्ष्मीसम्पन्न होकर सत्यधर्म का भाजन बन जाताहै। भक्ति के साथ व्रत करनेवाले उस पुरुषके अनेक जन्मों से संचित पाप दूर भाग जाते हैं तथा श्रीनारायण उसपर शीघ्र हीं प्रसन्न होते हैं।

कुर्म द्वादशी व्रत पूजा सामग्री:-

∗कुर्म भगवान जी की मूर्ति
∗मंदराचल की मूर्ति
∗कलश- 4
∗वस्त्र- 3
∗चौकी
∗पात्र- 4
∗घृत
∗धूप
∗दीप
∗अक्षत
∗चंदन
∗पुष्प
∗पुष्पमाला
∗नैवेद्य

कुर्म द्वादशी व्रत विधि:-

पौष मास की दशमी तिथि को नियमपूर्वक भगवान श्री हरि का पूजन करें। उस समय पवित्र वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक हवन करें । प्रसन्न मन से रहकर व्रती पुरुष को भली-भाँति सिद्ध किया हुआ हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिये। फिर कम-से-कम पाँच पग दूर जाकर अपने पैर धोये। पुन: प्रात: काल उठकर शौच के बाद आठ अंगुलकी लम्बी दतुअन से मुख को शुद्ध करें । दतुअन के लिये किसी दूधवाले वृक्ष का लकड़ी उपयोग करे। इसके बाद विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। शरीर के नौ द्वार हैं, उन सभी द्वारों को स्पर्श कर फिर भगवान कुर्म का ध्यान करे। ध्यान का प्रकार यह है-

इस प्रकार कहकर दिन में नियमपूर्वक उपवास करे। रात्रि के समय देवाधिदेव भगवान नारायण के समीप बैठकर ‘ऊँ नमो नारायणाय’ इस मंत्र का जप कर व्रती को सो जाना चाहिये। फिर द्वादशी तिथि को प्रात:काल होनेपर व्रती पुरुष समुद्र तक जानेवाली नदी अथवा दूसरी भी किसी नदी या तालाब पर जाकर अथवा घर पर सन्यमपूर्वक रहकर हाथ में पवित्र मिट्टी लेकर यह मंत्र पढ़े-

फिर जल के देवता वरुणसे प्रार्थना करे-

इस प्रकार का विधान सम्पन्नकर मिट्टी और जल हाथमें ले अपने सिर पर लगाये। साथ ही शेष बची हुई मृतिका को तीन बार समस्त अंगों में लगाये । फिर उपर्युक्त वारुण मंत्र पढ़कर विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान करने के पश्चात संध्या-तर्पण आदि नित्य-नियम सम्पन्न कर देवालय या फिर घर में बने पूजा गृह में जाये ।
सभी पूजन सामग्री एकत्रि कर लें। आसन पर बैठ जाये। हाथ में अक्षत, कुंकुम, रोली एवं पुष्प लेकर भगवान कुर्म की निम्न मंत्रों से पूजन करें:-
∗ऊँ कूर्माय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के चरण की पूजा करें ।
∗ऊँ नाराणाय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के कटिभाग की पूजा करें ।
∗ऊँ सङ्कर्षणाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के उदर की पूजा करें ।
∗ऊँ विशोकाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के वक्ष:स्थल की पूजा करें ।
∗ऊँ भवाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के कण्ठ की पूजा करें ।
∗ऊँ सुवाहवे नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के भुजाएँ की पूजा करें ।
∗ऊँ विशालाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के सिर की पूजा करें ।

फिर “भगवन्! आपके लिये नमस्कार है” – ऐसा कहना चाहिये । पुन: नाम-मंत्र का उच्चारण कर सुन्दर चन्दन,पुष्प, धूप,फल और नैवेद्य आदि अद्भुत उपचारों से परम प्रभु भगवान् श्रीहरि की पूजा करें।
इसके बाद सामने चार जलपूर्ण कलश स्थापित करे। कलश को माला और दो वस्त्र से सुसज्जित एवं अलंकृत करें । कलश के भीतर रत्न डालें तथा ऊपर घृत से भरा हुआ ताँबे का एक पात्र रखकर उसीमें प्रतिमा का अभिधारण करें। इन चार कलशों को चार समुद्र मानकर उनके मध्यभाग में एक चौकी को स्थापित करें। उस चौकी के ऊपर भगवान कूर्म की सुवर्ण की मूर्ति स्थापित करें। साथ में मन्दराचलकी भी प्रतिमा रखें। तत्पश्चात् पुष्प,चंदन एवं अर्घ्य आदि उपचारों से पूजा करे। उस समय मन में संकल्प करें- “मैं कल अपनी शक्ति के अनुरूप दक्षिणा आदि से ब्राह्मणों की पूजा करूँगा।इसमें कूर्म-रूप में प्रकट होनेवाले देवाधिदेव! भगवान् नारायण को मैं प्रसन्न करना चहता हूँ। ” द्वादशी की कथा सुने।भगवान् के सामने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूरी रात जागरण करे । प्रात:काल सुर्योदय होनेपर स्नान कर, पूजा करें । उसके बाद वह प्रतिमा और दक्षिणा ब्राह्मण को दे । उसके बाद भोजन करें।
विप्र! इस प्रकार कार्यसम्पन्न करनेपर व्रतकर्ता के पाप नष्ट हो जाते हैं। इसमें कुछ अन्यथा विचार नहीं करना चाहिये। वह पुरुष संसार चक्र का त्याग कर भगवान श्रीहरिके सनातन-लोक को चला जाता है।उसके पाप तत्कालविलीन हो जाते हैं और वह शोभा तथा लक्ष्मीसम्पन्न होकर सत्यधर्म का भाजन बन जाताहै। भक्ति के साथ व्रत करनेवाले उस पुरुषके अनेक जन्मों से संचित पाप दूर भाग जाते हैं तथा श्रीनारायण उसपर शीघ्र हीं प्रसन्न होते हैं।