कामदा एकादशी व्रत कथा (Page 2/4)

प्राचीन काल की बात है, नागपुर नामक एक सुंदर नगर था, जहाँ सोने के महल बने हुए थे। उस नगर में पुण्डरिक आदि महा भयंकर नाग निवास करते थे। गन्धर्व, किन्नर और अप्सराएँ भी उस नगरी का सेवन करती थी।
वहाँ एक श्रेष्ठ अप्सरा थी, जिसका नाम ललिता था। उसके साथ ललित नामवाला गंधर्व भी था। वे दोनों पति-पत्नी के रूप में रहते थ। दोनों हीं परस्पर काम से पीड़ित रहा करते थे।
ललिता के ह्रदय में सदा पति की ही मूर्ति बसी रहती थी और ललित के ह्रदय में सुन्दरी ललिता का निवास था।
एक दिन की बात है नागराज पुण्डरिक राज्यसभा में बैठकर मनोरंजन कर रहे थे। उस समय ललित का गान हो रहा था। किन्तु उसके साथ उसकी प्यारी ललिता नहीं थी। गाते-गाते उसे ललिता का स्मरण हो आया। अत: उसके पैरों की गति रूक गयी और जीभ लड़खड़ाने लगी।
नागों में श्रेष्ठ कर्कोंटक को ललित के मन का संताप ज्ञात हो गया। अत: उसने राजा पुण्डरिक को उसके पैरों की गति रूकने एवं गान में त्रुटि होने की बात बता दी।
कर्कोंटक की बात सुनकर नागराज पुण्डरिक की आँखें क्रोध से लाल हो गयी। उसने गाते हुए कामातुर ललित को शाप दे दिया- “ दुर्बुद्धे ! तू मेरे सामने गान करते समय भी पत्नी के वशीभूत हो गया, इसलिये राक्षस हो जा। ”