ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी “आखू (मूषक)” रथा गणेश जी पूजा विधि एवं कथा
कुछ समय के पश्चात बड़ी बहू गर्भिणी हो गई। दस मास के बाद उसने सुंदर बालक का प्रसव किया। उसकी सास बराबर बहू को व्रत करने का निषेध करने लगी और व्रत छोड़ने के लिए बहू को बाध्य करने लगी।
व्रत भंग होने के फलस्वरूप गणेश जी कुछ दिनों में कुपित हो गये और उसके पुत्र के विवाह-काल में वर-वधू के सुमंगली के समय उसके पुत्र का अपहरण कर लिया। इस अनहोनी घटना से मण्डप में खलबली मच गई।
सब लोग व्याकुल होकर कहने लगे- “लड़का कहाँ गया? किसने अपहरण कर लिया? ”
बारातियों द्वारा ऐसा समाचार पाकर उसकी माता अपने ससुर दयादेव से रो-रोकर कहने लगी- “हे ससुर जी! आपने मेरे गणेश चतुर्थी व्रत को छुड़वा दिया है, जिसके परिणाम स्वरूप ही मेरा पुत्र विलुप्त (गायब) हो गया है।”
अपनी पुत्रवधू के मुख से ऐसी बात सुनकर ब्राह्मण दयादेव बहुत दु:खी हुए। साथ ही पुत्रवधू (बहू के पुत्रवधू) भी दु:खित हुई।
पति के लिए दु:खित पुत्रवधू प्रति मास संकटनाशन गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगी।
एक समय की बात है कि एक वेदज्ञ और दुर्बल ब्राह्मण भिक्षाटन के लिए इस मधुरभाषिणी के घर आया। ब्राह्मण ने कहा कि हे बेटी ! मुझे भिक्षा स्वरूप इतना भोजन दो कि मेरी क्षुधा शांत हो जाए। उस ब्राह्मण की बात सुनकर उस धर्मपरायण कन्या ने उस ब्राह्मण को वस्त्रादि दिए।
कन्या की सेवा से सन्तुष्ट होकर ब्राह्मण कहने लगा-“ हे कल्याणी! हम तुम पर प्रसन्न है, तुम अपनी इच्छा के अनूकुल मुझसे वरदान प्राप्त कर लो। मैं ब्राह्मण वेशधारी गणेश हूँ और तुम्हारी प्रीति के कारण आया हूँ।”
ब्राह्मण की बात सुनकर कन्या हाथ जोड़कर निवेदन करने लगी-“ हे विघ्नेश्वर! यदि आप प्रसन्न हैं तो मुझे मेरे पति के दर्शन करा दिजिए। ”
कन्या की बात सुनकर गणेश जी ने उससे कहा कि हे सुन्दर विचार वाली, जो तुम चाहती हो वही होगा। तुम्हारा पति शीघ्र ही आवेगा। कन्या को इस प्रकार वरदान देकर गणेश जी वहीं अन्तर्निहित हो गए।
उसी समय की बात है कि सोमशर्मा नामक ब्राह्मण एक वन में से उस द्वीज बालक को नगर ले आये। अपने पौत्र को देखकर दयादेव नामक ब्राह्मण बहुत प्रसन्न हुए।
बालक की माता के हर्ष की तो सीमा ही न रही साथ ही सम्पूर्ण नगरवासी भी प्रमुदित हुए। बालक की माता ने पुत्र को छाती से लगा लिया और कहने लगी कि गणेश जी के प्रसाद से ही मैंने खोए हुए पुत्र को प्राप्त किया है।
उसे नए वस्त्राभूषणों से अलंकृत लिया। दयादेव तो बारम्बार सोमशर्मा को प्रणाम कर कहने लगे कि हे द्वीजराज ! आपकी कृपा से मैंने खोये हुए पुत्र को प्राप्त किया है।
खोया हुआ बालक घर में आ गया । सोमशर्मा को सुस्वादु भोजन कराकर , धोती दुपट्टा से विभूषित करके गोदान किया। फिर से मण्डप का निर्माण करके विधिपूर्वक वैवाहिक कार्य सम्पन्न किया। इससे सभी पुरवासी प्रसन्न हुए ।
वह भाग्यशालिनी कन्या अपने पति को पाकर धन्य हो उठी। ज्येष्ठ मास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी मनुष्यों के मनोरथ को पूर्ण करती है।
इस दिन नर-नारियों को ‘एकदंत’ गणेश की पूजा करनी चाहिए। हे देवी पूर्वकथित रीति से भक्ति पूर्वक जो व्यक्ति इस व्रत एवं पूजन को करेंगे उनकी सम्पूर्ण इच्छाएं पूरी होंगी। श्रीकृष्ण जी कहते हैं । हे राजन युधिष्ठिर ! भगवान गणेशजी के व्रत का ऐसा ही महात्म्य है। हे महाराज! अपने शत्रुओं के विनाशार्थ आप भी इस व्रतको अवश्य कीजिए।