ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी “आखू (मूषक)” रथा गणेश जी पूजा विधि एवं कथा

पार्वती जी ने पूछा कि हे पुत्र ! ज्येष्ठ मास की चतुर्थी का किस प्रकार पूजन करना चाहिए? इस महीने के गणेश जी का क्या नाम है? भोजन के रूप में कौन-सा पदार्थ ग्रहण करना चाहिए? इसकी विधि का आप संक्षेप में वर्णन किजिए।
गणेश जी ने कहा- हे माता! ज्येष्ठ कृष्ण पक्ष चतुर्थी सौभाग्य एवं पति प्रदायिनी है। इस दिन आखु(मूषक) रथा नामक गणेश जी की पूजा भक्तिपूर्वक करनी चाहिए । इस दिन घी निर्मित भोज्य पदार्थ अर्थात हलवा, लड्डु, पूड़ी आदि बनाकर गणेश जी को अर्पित करें । ब्राह्मण भोजन के पश्चात स्वयं भोजन करें।
हे पार्वती माता ! इससे प्रचलित मैं पूर्वकालीन इतिहास का वर्णन कर रहा हूँ। गणेश पूजन और व्रत की विधि जो पुराण में वर्णित है, उसे सुनिए।

सतयुग में सौ यज्ञ करने वाले एक पृथु नामक राजा हुए। उनके राज्यांतर्गत दयादेव नामक एक ब्राह्मण रहते थे। वेदों में निष्णात उनके चार पुत्र थे। पिता ने अपने पुत्रों का विवाह गृहसूत्र के वैदिक विधान से कर दिया।
उन चारों बहुओं में बड़ी बहू अपनी सास से कहने लगी- हे सासुजी ! मैं बचपन से संकटनाशन गणेश चतुर्थी का व्रत करती आई हूँ। मैंने पितृगृह में भी इस शुभदायक व्रत को किया है।
अत: हे कल्याणी ! आप मुझे यहाँ व्रतानुष्ठान करने( व्रत रहने) की अनुमति प्रदान करें।
पुत्र वधू की बात सुनकर उसके ससुर ने कहा- “हे बहू ! तुम सभी बहुओं में श्रेष्ठ और बड़ी हो। तुम्हें किसी प्रकार का कष्ट नहीं है और न तो तुम भिक्षुणी हो ! ऐसी स्थिति में तुम किस लिए व्रत करना चाहती हो? हे सौभाग्यवती ! अभी तुम्हारा समय उपभोग करने का है। ये गणेश जी कौन हैं? फिर तुम्हें करना ही क्या है? ”