योगिनी एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 1/4)
युधिष्ठिर ने पूछा-“वासुदेव ! आषाढ़ के कृष्ण पक्ष में जो एकादशी होती है, उसका क्या नाम है ? कृपया उसका वर्णन किजिये। ”
भगवान श्री कृष्ण बोले- “ नृपश्रेष्ठ ! आषाढ़ के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम ‘योगिनी’ है। यह बड़े-बड़े पातकों का नाश करनेवाली है । संसार सागर में डूबे हुए प्राणियों के लिये यह सनातन नौका के समान है। तीनों लोकों में यह सारभूत व्रत है।”
अलकापुरी में राजाधिराज कुबेर रहते हैं। वे सदा भगवान शिवकी भक्ति में तत्पर रहनेवाले हैं ।
उनका हेममाली नामवाला एक यक्ष सेवक था, जो पूजा के लिये फूल लाया करता था। हेममाली की पत्नी बड़ी सुन्दर थी। उसका नाम विशालाक्षी था।
वह यक्ष कामपाश में आबद्ध होकर सदा अपनी पत्नी में आसक्त रहता था।
एक दिन की बात है , हेममाली मानसरोवर से फूल लाकर अपने घर में ही ठहर गया और पत्नी के प्रेम का रसास्वादन करने लगा ; अत: कुबेर के भवन में न जा सका ।
इधर कुबेर मन्दिर में बैठकर शिवका पूजन कर रहे थे।
उन्होंने दोपहर तक फूल आने की प्रतीक्षा की।
जब पूजा का समय व्यतीत हो गया तो यक्षराज ने कुपित होकर सेवकों से पूछा- “ यक्षों दुरात्मा हेममाली क्यों नहीं आ रहा है, इस बात का पता तो लगाओ।”