पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 4/4)
प्रजाओं ने कहा- “मुने ! पुराण में सुना जाता है कि प्रायश्चित रूप पुण्य से पाप नष्ट होता है ;
अत: पुण्य का उपदेश किजिये , जिससे उस पाप का नाश हो जाय ।”
लोमश जी बोले- “प्रजाजनो ! श्रावण मास के शुक्ल पक्ष में जो एकादशी होती है, वह ‘पुत्रदा’ के नाम से विख्यात है।
वह मनोवाञ्छित फल प्रदान करनेवाली है। तुमलोग उसी का व्रत करो।”
यह सुनकर प्रजाओं ने मुनि को नमस्कार किया और नगर में आकर विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी के व्रत का अनुष्ठान किया ।
उन्होंने विधिपूर्वक जागरण भी किया और उसका निर्मल पुण्य राजा को दे दिया ।
तत्पश्चात रानी ने गर्भ धारण किया और प्रसव का समय आनेपर बलवान पुत्र को जन्म दिया।
इसका महात्म्य सुनकर मनुष्य पाप से मुक्त हो जाता है तथा इहलोक में सुख पाकर परलोक में स्वर्गीय गति को प्राप्त होता है।