पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 2/4)
राजा के ये वचन सुनकर प्रजा और पुरोहितों के साथ ब्राह्मणों ने उनके हित का विचार करके गहन वन में प्रवेश किया। 
 राजा का कल्याण चाहनेवाले वे सभी लोग इधर- उधर घूमकर ऋषि सेवित आश्रमों की तलाश करने लगे। 
इतने ही में उन्हें मुनिश्रेष्ठ लोमश का दर्शन हुआ। लोमशजी धर्म के तत्वज्ञ ,सम्पूर्ण शास्त्रों के विशिष्ट विद्वान, दीर्घायु और महात्मा है। 
उनका शरीर लोम से भरा हुआ है। वे ब्रह्माजी के समान तेजस्वी है। एक-एक कल्प बीतने पर उनके शरीर का एक-एक लोम विशीर्ण होता- टूटकर गिरता है; इसलिये उनका नाम लोमश हुआ है। 
 वे महामुनि तीनों कालों की बातें जानते हैं। उन्हें देखकर सब लोगों को बड़ा हर्ष हुआ। 
उन्हें निकट आया देख लोमशजी ने पूछा- “ तुम सब लोग किसलिये यहाँ आये हो? 
 अपने आगमन का कारण बताओ । तुमलोगों के लिये जो हितकर कार्य होगा, उसे मैं अवश्य करूँगा।” 
प्रजाओं ने कहा- “ब्रह्मन ! इस समय महीजित नामवाले जो राजा हैं, उन्हें कोई पुत्र नहीं है। 
हमलोग उन्हीं की प्रजा है, जिनका उन्होंने पुत्र की भाँति पालन किया है। 
उन्हें पुत्रहीन देख, उनके दु:ख से दु:खित हो हम तपस्या करने का दृढ़ निश्चय कर यहाँ आये हैं । 
द्वीजोत्तम ! राजा के भाग्य से इस समय हमें आपका दर्शन मिल गया है। महापुरुषों  के दर्शन से ही मनुष्यों के सब कार्य सिद्ध हो जाते हैं। 
 मुने ! अब हमें उस उपाय का उपदेश किजिये , जिससे राजा को पुत्र की प्राप्ति हो।”