रथ सप्तमी व्रत विधि 2025
माघ शुक्ल पक्ष के सप्तमी तिथि को “रथ सप्तमी” या “अचला सप्तमी ” का व्रत किया जाता है। इस वर्ष रथ सप्तमी व्रत 3 फरवरी 2025, सोमवार को है | यह व्रत भगवान सुर्यदेव को समर्पित है। यह व्रत सूर्य सप्तमी, रथ आरोग्य सप्तमी, सूर्यरथ सप्तमी आदि नामों से भी जाना जाता है ।भविष्य पुराण के अनुसार सुर्यदेव को अपना दिव्य रूप सप्तमी तिथि को ही मिला और संतानें भी इसी तिथि को प्राप्त हुई, अत: सप्तमी तिथि भगवान सुर्य को अतिशय प्रिय है। माघ मास की सप्तमी को वरुण नामक सुर्य की पुजा करें। जो व्यक्ति सप्तमी तिथि का व्रत करता है वह अनेक प्रकार के सुखों का भोग करता है तथा सर्वत्र विजय प्राप्त करता है एवं अंत में उत्तम विमान पर चढ़करसुर्यलोक को जाता है। इस दिन स्नान, दान, होम, पूजा आदि कर्म से हजार गुना अधिक फल की प्राप्ति होती है।इस व्रत के प्रभाव से सभी प्रकार के रोगों का नाश हो जाता है। महापुण्यदायिनि इस सप्तमी को रथ-सप्तमी कहते हैं। रथसप्तमी को जो उपवास करता है वह कीर्ति, धन, विद्या, पुत्र, आरोग्य, आयु और उत्तमोत्तम कांति प्राप्त करता है।
रथ सप्तमी पूजन सामग्री 2025 – Rath Saptami pujan samagri 2025
शिव-पार्वती का चित्र अथवा मूर्ति
पुष्प
धूप
दीप( चाँदी/ ताम्र अथवा स्वर्ण)
केसर
चंदन- लाल
चौकी अथवा लकड़ी का पटरा
लाल रंग से रंगी हुई रूई की बाती
तिल का तेल
नैवेद्य
दान के लिये:-
इस तिथि को व्रत कर घृत, दही जल और पुष्पों से स्वामी कार्तिकेय को दक्षिण की ओर मुख करके अर्घ्य देना चाहिये: -
पात्र (ताम्र अथवा मिट्टी का)
गुड़
घृतमिश्रित तिलचूर्ण
एक कान का आभूषण ( ताल-पत्राकार स्वर्ण का)
लाल वस्त्र
तिल
वस्त्र
माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को सात्विक भोजन करें। षष्ठी को उपवास करें और सप्तमी को पारण करने का विधान है।वस्तुत: षष्ठी को उपवास करके पंचोपचार विधि से सुर्यनारायण की पूजा करें। सप्तमी को सुर्योदय से पूर्व उठकर किसी नदी अथवा जलाशय में जाकर स्नान करें। स्नान के बाद सुवर्ण, चाँदी अथवा ताम्र (यथाशक्ति अनुसार) के पात्र में लाल रंग की रंगी हुई बत्ती और तिल का तेल डालकर दीपक प्रजवलित करे। उस दीपक को सिर पर रखकर भगवान सुर्य का ध्यान करे और निम मंत्र का उच्चारण करें :-
नमस्ते रुद्ररुपाय रसानाम्पतये नम: ।
वरुणाय नमस्तेsस्तु हरिवास नमोsस्तु ते॥
यावज्जन्म कृतं पापं मया जन्मसु सप्तसु।
तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी॥
जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके ।
सर्वव्याधिहरे देवि नमस्ते रविमण्डले॥”
उसके बाद दीपक को जल में प्रवाहित कर दें। फिर स्नान कर देवता और पितरों का तर्पण करे । चौकी अथवा लकड़ी के पटरे पर बाद लाल चंदन से कर्णिका सहित अष्टदल कमल बनाये। उस कमल के बीच में शिव-पार्वती की स्थापना करें।
अब सबसे पहले धूप, दीप, अक्षत,चंदन, पुष्प,वस्त्र तथा नैवेद्य से शिव-पार्वती की पूजा करें।
साथ मे “ ऊँ” मंत्र का जाप करें।
इसके बाद आठ कमल दल में अलग-अलग आठ नामों से धूप, दीप, अक्षत,चंदन, पुष्प, वस्त्र तथा नैवेद्य से सुर्य की पूजा करें और मंत्र का उच्चारण करें:-
ऊँ भानवे नम:
ऊँ रवये नम:
ऊँ विवस्वाने नम:
ऊँ भास्काराय नम:
ऊँ सविताय नम:
ऊँ अर्क नम:
ऊँ सहस्त्रकिरणे नम:
ऊँ सर्वात्माका नम:
व्रत कथा को सुने अथवा सुनायें। कथा के बाद हाथ मे अक्षत लेकर निम मंत्र के द्वारा विसर्जन करें :-
स्वस्थानं गम्यताम्
अक्षत को शिव-पार्वती तथा अष्ट्दल कमल पर छोड़ दें।
अब ताम्र अथवा मिट्टी के पात्र में गुड़ और घृतसहित तिलचूर्ण तथा सुवर्ण का ताल-पत्राकार एक कान का आभूषण बनाकर पात्र में रखें। लाल वस्त्र से उसे ढ़ँक दें। अब पुष्प-धूपादि से पूजन करे और वह पात्र दौर्भाग्य तथा दु:खों के विनाशकी कामना से ब्राह्मण को दे दे।
दोनों हाथ जोड़कर मंत्र के दवारा भगवान सुर्य की प्रार्थना करें ‘सपुतपशुभृत्याय मेsर्कोsयं प्रीयताम्’
अर्थ:- पुत्र, पशु, भृत्यसमन्वित मेरे ऊपर भगवान सुर्य प्रसन्न हो जायँ-
प्रार्थनाके बाद गुरु को वस्त्र, तिल, और दक्षिणा प्रदान करें। यथाशक्ति अन्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत समाप्त करे।
व्रत कथा:
राजा युधिष्ठिर ने पूछा- “भगवन! आपने सभी उत्तम फलों को देनेवाली माघ स्नान का विधान बतलाया, परंतु जो प्रात:काल स्नान करने मे समर्थ न हो तो वह क्या करे ? स्त्रियाँ अति सुकुमार होती हैं, वे किस प्रकार माघ स्नान का कष्ट सहन कर सकती हैं? इसलिये आप कोई ऐसा उपाय बतायें कि थोड़े से परिश्रम से भी नारियों को रूप , सौभाग्य, संतान और अनंत पुण्य प्राप्त हो जाय।’
भगवान श्री कृष्ण बोले- महाराज! मैं अचला- सप्तमी का अत्यंत गोपनीय विधान आपको बतलाता हूँ , जिसके करने से सब उत्तम फल प्राप्त हो जाते है । इस सम्बंध में आप एक कथा सुने-
मगध देश में अति रूपवती इंदुमती नामकी एक वेश्या रहती थी । एक दिन वह वेश्या प्रात:काल बैठी-बैठी संसार की अनवस्थिति (नश्वरता)- का इस प्रकार चिंतन करने लगी – देखो ! यह विषयरूपी संसार-सागर कैसा भयंकर है, जिसमें डूबते हुए जीव जन्म-मृत्यु-जरा आदि से तथा जल-जंतुओं से पीड़ित होते हुए भी किसी प्रकार पार उतर नहीं पाते । ब्रह्माजी के द्वारा निर्मित यह प्राणी समुदाय अपने कियी गये कर्मरूपी ईंधन से एवं कालरूपी अग्नि से दग्ध कर दिया जाता है । प्राणियों के जो धर्म, अर्थ, कामसे रहित दिन व्यतीत होते हैं, फिर वे कहाँ वापस आते हैं ? जिस दिन स्नान, दान, तप, होम , स्वाध्याय, पितृतर्पण आदि सत्कर्म नहीं किया जाता , वह दिन व्यर्थ है। पुत्र , स्त्री. घर, क्षेत्र तथा धन आदि की चिंता में सारी आयु बीत जाती है और मृत्यु आकर धर दबोचती है।
इस प्रकार कुछ निर्विण्ण- उद्विग्न होकर सोचते-विचारती हुई वह इन्दुमती वेश्या महर्षि वसिष्ठ के आश्रम में गयी और उन्हें प्रणाम कर हाथ जोड़कर कहने लगी- “महाराज! मैंने न तो कभी कोई दान दिया, न जप, तप, व्रत, उपवास आदि सत्कर्मों का अनुष्ठान किया और न शिव, विष्णु आदि किन्हीं देवताओं की आराधना की, अब मैं इस भयंकर संसार सए भयभीत होकर आपकी शरण आयी हूँ, आप मुझे कोई ऐसा व्रत बतलायें, जिसस मेरा उद्धार हो जाय।”
वसिष्ठजी बोले- “वरानने ! तुम माघ मास के शुक्ल पक्ष की सप्तमी को स्नान करो, जिससे रूप, सौभाग्य और सद्गति आदि सभी फल प्राप्त होते हैं। ष्ष्ठी के दिन एक बार भोजन कर सप्तमी को प्रात:काल ही ऐसे नदी तट अथवा जलाशय पर जाकर दीपदान और स्नान करो, जिसके जल को किसीने स्नान कर हिलाया न हो, क्योंकि जल मल को प्रक्षालित कर देता है।बाद में यथाशक्ति दान भी करो । इससे तुम्हारा कल्याण होगा। ”
वसिष्ठजी का ऐसा वचन सुनकर इन्दुमती अपने घर लौट आयी और उनके दवारा बतायी गयी विधि के अनुसार उसने स्नान-ध्यान आदि कर्मों को समपन्न किया। सप्तमी के स्नान के प्रभाव से बहुत दिनों तक सांसारिक सुखों का उपभोग करती हुई वह देह-त्याग के पश्चात देवराज इंद्र की सभी अप्सराओं मे प्रधान नायिका के पद पर अधिष्ठित हुई। यह अचला सप्तमी सम्पूर्ण पापों का प्रशमन करने वाली तथा सुख-सौभाग्य की वृद्धि करनेवाली है।
राजा युधिष्ठिर ने कहा- “भगवन! अचलासप्तमी का महात्म्य तो आपने बतलाया, कृपाकर अब स्नान का विधान भी बतलायें ।”
भगवान श्रीकृष्ण बोले- “महाराज! षष्ठी के दिन एक समय भोजन करके सुर्यनारायण का पूजन करे। यथासम्भव सपतमी को प्रात:काल ही उठकर नदी या सरोवर पर जाकर अरुणोदय आदि बेला में बहुत सवेरे ही स्नान करने की चेष्टा करे। सुवर्ण, चाँदी अथवा ताम्र के पात्र में कुसुम्भ की रंगी हुई बत्ती और तिल का तेल डालकर दीपक प्रजवलित करे। उस दीपक को सिर पर रखकर हृदय में भगवान सुर्य का इस प्रकार ध्यान करे:-
नमस्ते रुद्ररुपाय रसानाम्पतये नम: ।
वरुणाय नमस्तेsस्तु हरिवास नमोsस्तु ते॥
यावज्जन्म कृतं पापं मया जन्मसु सप्तसु।
तन्मे रोगं च शोकं च माकरी हन्तु सप्तमी॥
जननी सर्वभूतानां सप्तमी सप्तसप्तिके ।
सर्वव्याधिहरे देवि नमस्ते रविमण्डले॥”
तदन्तर दीपक को जल की ऊपर तैरा दे, फिर स्नानकर देवता और पितरों का तर्पण करे और चंदन से कर्णीका सहित अष्टदल कमल बनाये। उस कमल के मध्य में शिव-पार्वती की स्थापना कर प्रणव-मंत्र (“ऊँ” ) से पूजा करे और पूर्वादि आठ दलों मे क्रम से भानु, रवि, विवस्वान, भास्कर, सविता, अर्क, सहस्त्रकिरण तथा सर्वात्माका पूजन करे। इन नामों के आदि में “ऊँ” तथा अंत में “नम:” पद लगाये।
इस प्रकार पुष्प, धूप, दीप, नैवेद्य तथा वस्त्र आदि उपचारों से विधिपूर्वक भगवान सुर्य की पूजाकर “स्वस्थानं गम्यताम्” यह कहकर विसर्जित कर दे। बाद में ताम्र अथवा मिट्टी के पात्र में गुड़ और घृतसहित तिलचूर्ण तथा सुवर्ण का ताल-पत्राकार एक कान का आभूषण बनाकर पात्र में रख दें। अनंतर रक्त वस्त्र से उसे ढ़ँककर पुष्प-धूपादि से पूजन करे और वह पात्र दौर्भाग्य तथा दु:खों के विनाश की कामना से ब्राह्मण को दे दे।
‘सपुतपशुभृत्याय मेsर्कोsयं प्रीयताम्’ पुत्र, पशु, भृत्यसमन्वित मेरे ऊपर भगवान सुर्य प्रसन्न हो जायँ- ऐसी प्रार्थना करे।फिर गुरु को वस्त्र, तिल, गौ, और दक्षिणा देकर तथा यथाशक्ति अन्य ब्राह्मणों को भोजन कराकर व्रत समाप्त करे।
जो पुरुष इस विधि से अचलासप्तमी को स्नान करता है उसे सम्पूर्ण माघ स्नान का फल प्राप्त होता है।जो इस महात्म्य को भक्ति से कहेगा या सुनेगा तथा लोगों को इसका उपदेश करेगा, वह उत्तम लोक को अवश्य प्राप्त होगा।