रमा एकादशी व्रत कथा प्रारम्भ (Page 6/6)
तदन्तर चन्द्रभागा ने हर्ष में भरकर अपने प्रियतम से यह प्रिय वचन कहा- ‘ नाथ ! मैं हित की बात कहती हूँ , सुनिये पिता के घर में रहते समय जब मेरी अवस्था आठ वर्ष से अधिक हो गयी, तभी से लेकर आजतक मैंने जो एकादशी के व्रत किये हैं और उनसे मेरे भीतर जो पुण्य सञ्चित हुआ है , उसके प्रभाव से यह नगर कल्प के अन्त तक स्थिर रहेगा तथा सब प्रकार से मनोवाञ्छित वैभव से समृद्धिशाली होगा । ’
नृपश्रेष्ठ ! इस प्रकार ‘रमा’ व्रत के प्रभाव से चन्द्रभागा दिव्य भोग, दिव्य रूप और दिव्य आभूषणों से विभूषित हो अपने पति के साथ मन्दराचल के शिखर पर विहार करती है। राजन ! मैंने तुम्हारे समक्ष ‘रमा’ नामक एकादशी का वर्णन किया है। यह चिन्तामणि तथा कामधेनु के समान सब मनोरथों को पूर्ण करनेवाली है। जो मनुष्य एकादशी व्रत का महात्म्य सुनता है वह सब सुख भोगकर स्वर्गलोक को जाता है।