पुष्करिणी (वैशाख मास की अंतिम तीन तिथियां - त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा)

वैशाख मास की अंतिम तीन तिथियों त्रयोदशी, चतुर्दशी और पूर्णिमा (२७ अप्रैल,२८ अप्रैल,२९ अप्रैल,३० अप्रैल) को ‘पुष्करिणी’ कहते हैं। इन तिथियों को स्नान-दान, पूजा-पाठ करके भक्त पुण्य प्राप्त कर सकते हैं।

श्रुतदेवजी कहते हैं-“”राजेंद्र! वैशाख के शुक्ल पक्ष में जो अन्तिम तीन त्रयोदशी से लेकर पूर्णिमा तक की तिथियाँ हैं,वे बड़ी पवित्र और शुभकारक हैं। उनका नाम ‘पुष्करिणी’ है,वे सब पापों का क्षय करनेवाली हैं। जो सम्पूर्ण वैशाख मास में स्नान करने में असमर्थ हो, वह यदि इन तिथियों में भी स्नान करे, तो वैशाख मास स्नान का पूरा फल पा लेता है। पूर्वकाल में वैशाखमास की एकादशी तिथि को शुभ अमृत प्रकट हुआ द्वादशी को भगवान विष्णु ने उसकी रक्षा की। त्रयोदशी को उन श्रीहरि ने देवताओं को सुधा-पान कराया। चतुर्दशी को देवविरोधी दैत्यों का संहार किया और पूर्णिमा के दिन समस्त देवताओं को उनका साम्राज्य प्राप्त हो गया।
इसलिये देवतओं ने संतुष्ट होकर इन तीन तिथियों को वर दिया- “वैशाखकी य तीन शुभ तिथियाँ मनुष्यों के पापों का नाश करनेवाली तथा उन्हें पुत्र-पौत्रादि फल देनेवाले हों। जो मनुष्य इस सम्पूर्ण मास में स्नान न कर सका हो, वह इन तिथियों में स्नान कर लेने पर पूर्ण फल को पाता है। महीने भर नियम निभाने में असमर्थ मनुष्य यदि उक्त तीन दिन भी कामनाओं का संयम कर सके तो उतने से ही पूर्ण फल को पाकर भगवान विष्णु के धाम में आनंद का अनुभव करता है। ”इस प्रकार वर देकर देवता अपने धाम को चले गये। अत: पुष्करिणी नाम से प्रसिद्ध अंतिम तीन तिथियाँ पुण्यदायिनी, सम्स्त पापराशिका नाश करनेवाली तथा पुत्र-पौत को बढ़ाने वाली है।
जो वैशाख मास में अंतिम तीन दिन गीता का पाठ करता है, उसे प्रतिदिन अश्वमेघ यज्ञ का फल मिलता है। जो उक्त तीनों दिन विष्णुसहस्त्रनाम का पाठ करता है, उसके पुण्यफल का वर्णन करने में इस भूलोक तथा स्वर्गलोक में कौन समर्थ है? पूर्णिमा को सह्स्त्रनामों के द्वारा भगवान मधुसूदन को दूध से नहलाकर मनुष्य पापहीन वैकुण्ठधाम में जाता है। जो वैशाख के अंतिम तीन दिनों में भागवतशास्त्र का श्रवण करता है, वह जल से कमलके पत्ते की भाँति कभी पापों से लिप्त नहीं होता। इसलिये वैशाख के अंतिम तीन दिनों में स्नान, दान और भगवत्पूजन अवश्य करना चाहिये।