पुत्रदा एकादशी व्रत कथा (Page 4/4)
भगवान श्री कृष्ण कहते हैं- “युधिष्ठिर ! इस प्रकार उन मुनियों के कहने से राजा ने उत्तम व्रत का पालन किया।
महर्षियों के उपदेश के अनुसार राजाने विधिपूर्वक पुत्रदा एकादशी का अनुष्ठान किया। फिर द्वादशी को पारण करके मुनियों के चरणों में बारम्बार मस्तक झुकाकर राजा अपने घर आये।
तदन्तर रानी ने गर्भ धारण किया। प्रसवकाल आने पर पुण्यकर्मा राजा को तेजस्वी पुत्र प्राप्त हुआ, जिसने अपने गुणों से पिता को संतुष्ट कर दिया। वह प्रजाओं का पालक हुआ। इसलिये, राजन! ‘पुत्रदा’ का उत्तम व्रत अवश्य करना चाहिये।”
मैंने लोगों के हित के लिये तुम्हारे सामने इसका वर्णन किया है। जो मनुष्य एकाग्रचित होकर ‘पुत्रदा’ का व्रत करते हैं, वे इस लोक में पुत्र पाकर मृत्यु के पश्चात् स्वर्गगामी होते हैं। इस महात्म्य को पढ़ने और सुनने से अग्निष्टोम यज्ञ का फल प्राप्त होता है।
बोलो श्री विष्णुभवान की जय । बाल-गोपाल कृष्ण- कन्हैया की जय्।