दक्षिणा :-

मंत्र के द्वारा दक्षिणा समर्पित करें:-

narsingh jayanti puja vidhi in hindi

आरती:-

एक थाली या आरती के पात्र में दीपक तथा कपूर प्रज्वलित कर आरती करें:-

narsingh jayanti puja vidhi in hindi

आरती का तीन बार प्रोक्षण करके सबसे पहले सभे देवी-देवताओं को आरती दें। उसके बाद उपस्थित व्यक्तियों को आरती दें एवं स्वयं भी आरती ले।

!! Om jai narsinh hare, prabhu jai narsingh hare
Stambh faad prabhu prakte, stambh faad prabhu, prakte,janka taap hare
Om jai narsinh hare !!
!! Tum ho din dayala,bhagatan hitkari,prabhu bhagatan hitkari
Adbhut roop banakar, adbhut roop banakar,prakte bhay haari
Om jai narsinh hare !!
!! Sabke hrede vidaran, dusyu jiyo mari,prabhu dusyu jiyo mari
Daas jaan aapnaeo,das jaan aapnaeo,janpar kripa kari
Om jai narsinh hare !!
!! Brahma karat aarti , mala pahinave,prabhu,,mala pahinave
Shivji jai jai keh kar pushpan barsave
Om jai narsinh hare !!

प्रार्थना:-

तत्पश्चात् भगवान् से इस प्रकार प्रार्थना करे-
‘नृसिंह ! अच्युत ! देवेश्वर ! आपके शुभ जन्मदिन को मैं सब भोगों का परित्याग करके उपवास करूँगा । स्वामिन्। आप इससे प्रसन्न हों तथा मेरे पाप और जन्म के बन्धन को दूर करे।’ यों कहकर व्रत का पालन करे ।
रात में गीत और वाद्यों की ध्वनि के साथ जागरण करना चाहिये । भगवान् नृसिंह की कथा से सम्बन्ध रखनेवाले पौराणिक प्रसंग का पाठ भी करना उचित है ।
फिर प्रात:काल होनेपर स्नान के अनन्तर पूर्वोक्त विधि से पूजा करे।

प्रार्थना:-

उसके बाद हाथ जोड़कर प्रार्थना करें:-
विशालरूप धारण करनेवाले भगवान भगवान नृसिंह ! करोड़ों कालों के लिये भी आपको परास्त करना कठिन है । बालरूपधारी प्रभो! आपको नमस्कार है । बाल अवस्था तथा बालकरूप धारण करनेवाले श्रीनृसिंह भगवान को नमस्कार है। जो सर्वत्र व्यापक, सबको आनन्दित करनेवाले, स्वत: प्रकट होनेवाले, सर्वजीव स्वरूप, विश्वके स्वामी, देवस्वरूप और सुर्यमण्डल में स्थित रहनेवाले है, उन भगवान को प्रणाम है। दयासिन्धो ! आपको नमस्कार है । आप तेईस तत्त्वोंके साक्षी चौबीसवें तत्त्वरूप है। काल, रुद्र और अग्नि आपके ही स्वरूप हैं। यह जगत् भी आपसे भिन्न नहीं है । नर और सिंहका रूप धारण करनेवाले आप भगवान को नमस्कार है।
देवेश! मेरे वंश में जो मनुष्य उत्पन्न हो चुके हैं और जो उत्पन्न होनेवाले हैं, उन सबका दु:खदायी भवसागर से उद्धार किजिये ।जगत्पते ! मैं पातक के समुद्र में डूबा हूँ । नाना प्रकार की व्याधियाँ ही इस समुद्र की जल राशि है । इसमें रहनेवाले जीव मेरा तिरस्कार करते हैं ।इस कारण मैं महान दु:ख में पड़ गया हूँ । शेषशायी देवेश्वर! मुझे अपने हाथों का सहारा दीजिये और इस व्रत से प्रसन्न हो मुझे भोग और मोक्ष प्रदान किजिये ।

विसर्जन:‌-

विसर्जन के लिये हाथ में अक्षत , पुष्प लेकर मंत्र –उच्चारण के द्वारा विसर्जन करें-
स्वस्थानं गच्छ देवेश प्रभो ।
पूजाकाले पुनर्नाथ त्वग्राऽऽगन्तव्यमादरात्॥
हाथ में अक्षत लेकर इस प्रकार प्रार्थना करके विधिपूर्वक देवता का विसर्जन करे।
तदनन्तर सुपात्र ब्राहणों को गौ, भूमि, तिल,सुवर्ण, ओढ़ने-बिछौने आदि के सहित चारपाई, सप्तधान्य तथा अन्यान्य वस्तुएँ अपनी शक्ति के अनुसार का दान करें । अन्त में ब्राह्मणों को भोजन कराये और उन्हें उत्तम दक्षिणा दे।