कार्तिक संकष्टी चतुर्थी -गणेश चतुर्थी व्रत कथा (दैत्यराज वृत्रासुर की कथा ) page-1/2

पार्वती जी कहती हैं कि हे भाग्यशाली ! लम्बोदर ! भाषणकर्ताओं में श्रेष्ठ ! कार्तिक कृष्ण चतुर्थी को किस नाम वाले गणेश जी की पूजा किस भांति करनी चाहिए ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि अपनी माता की बात सुनकर गणेश जी ने कहा कि कार्तिक कृष्ण चतुर्थी का नाम संकटा है । उस दिन ‘पिंग’ नामक गणेश जी की पूजा करनी चाहिए ।
पूजन पूर्वोक्त रीति से करना उचित है। भोजन एक बार करना चाहिए । व्रत और पूजन के बाद ब्राह्मण भोजन कराकर स्वयं मौन होकर भोजन करना चाहिए ।
मैं इस व्रतका महात्म्य कह रहा हूँ , सावधानी पूर्वक श्रवण किजिए। कार्तिक कृष्ण संकट चतुर्थी को घी और उड़द मिलाकर हवन करना चाहिए । ऐसा करने से मनुष्य को सर्वसिद्धि प्राप्त होती है ।
श्रीकृष्ण जी ने कहा कि वृत्रासुर दैत्य ने त्रिभुवन को जीत करके सम्पूर्ण देवों को परतंत्र कर दिया । उसने देवताओं को उनके लोकों से निष्कासित कर दिया । परिणामस्वरूप देवता लोग दशों दिशाओं में भाग गए ।
तब सभी देव इन्द्र के नेतृत्व में भगवान विष्णु के शरणागत हुए ।
देवों की बात सुनकर विष्णु ने कहा कि समुद्री द्वीप में बसने के कारण वे (दैत्य) निरापद होकर उच्छृंखल एवं बलशाली हो गया हैं। पितामह ब्रह्मा जी से किसी देवों के द्वारा न मरने का उसने वर प्राप्त कर लिया है।
अत: आप लोग अगस्त्य मुनि को प्रसन्न करें । वे मुनि समुद्र को पी जायेंगे।
तब दैत्य लोग अपने पिता के पास चले जायेंगे । आप लोग सुखपूर्वक स्वर्ग में निवास करने लगेंगे ।
अत: आप लोगों का कार्य अगस्त्य मुनि की सहायता से पूरा होगा ।

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