गणगौर उद्यापन की विधी (Gangaur Udyapan vidhi )

गणगौर की पूजा लड़कियाँ विवाह के पहले से ही करती हैं।नई ब्याहता स्त्रियाँ की जो गणगौर सोलह दिन के बाद अंतिम दिन पूजी जाती है, उसका उद्यापन किया जाता है

गणगौर उद्यापनपूजन सामग्री:- (Gangaur Udyapan Pujan Samagri)

• लकड़ी की चौकी या पटरा
• कलश(ताँबे का)
• मिट्टी के कुंडे(गमले)- 2
• दीपक (मिट्टी)
• हल्दी पाउडर
• कुमकुम
• मेहंदी
• गुलाल(अबीर)
• काजल
• चावल
• घी
• फूल
• दूब
• आम के पत्ते
• पान का पत्ता- 5
• गेहू
• कलश (पानी से भरा हुआ)
• नारियल
• सुपारी
• कपड़ा (गणगौर के लिये)
• डलिया या टोकरी (बाँस की)
• कपड़ा (लाल चुनरी)

गणगौर उद्यापन की अतिरिक्त सामग्री(अंतिम दिन के लिये):-

• साड़ी
• श्रृंगार का सामान (सोलह श्रृंगार का सामान)
• गेहू
• गुने(आटे के)
• सीरा(हलवा)
• पूड़ी

गणगौर उद्यापन की विधी (Gangaur Udyapan ki vidhi)

नव विवाहिता गणगौर का उद्यापन करती हैं। नव विवाहिता कन्या पहली होली पर गणगौर की पूजा अपने मायके या ससुराल में करती है। इसमें सोलह दिन तक पूजा होती है। यह गणगौर जोड़े में पूजा जाता है। नव विवाहिता एवं सोलह कुँवारी कन्या एक साथ पूजा करती है। नव विवाहिता अपने पड़ोस के सोलह कुँवारी कन्याओं को एक-एक सुपारी देकर गणगौर पूजा का निमंत्रण देती है। सभी मिलकर नव विवाहिता के घर पर गणगौर की पूजा करती है।
होली की राख या काली मिट्टी एकत्रित करते हैं ।
चौकी या लकड़ी के पाटे पर रोली से स्वास्तिक(सतिया) बनायें । चौकी पर दाहिनी ओर पानी से भरा कलश रखें । कलश के उपर पान की पाँच पत्ते रखें और पान के पत्ते के ऊपर नारियल रखें।
सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। चौकी के एक तरफ साबुत सुपारी को गणेश जी के रूप में रखें।यही पर सवा रुपया भी रखें। अब गणेश जी की पूजा करें।
होली की राख या काली मिट्टी से छोटी-छोटी सोलह पिंडी बनायें। सभी पिंडीयों को चौकी पर रखें। सबसे पहले उन पिंडियों पर पानी के छींटे दें । उसके बाद कुमकुम और चावल से पूजा करें।
चौकी के पास हीं दीवाल पर कुमकुम, मेहंदी, हल्दी और काजल से टीका लगायें। कुँवारी कन्याएँ आठ-आठ टीके और विवाहित स्त्रियाँ सोलह टीके लगायें।
उसके बाद हाथ में दूब लेकर और पानी का कलश लेकर सोलह बार जोड़े के साथ गणगौर की पूजा गीत गा कर करें। पूजन के बाद गणगौर की कहानी के साथ-साथ गणेश जी की कहानी सुने या कहें।
कहानी के बाद पाटे का गीत गायें । उसके बाद हाथ जोड़कर प्रणाम करें। फिर कलश के जल लेकर सुर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।
इसी प्रकार से सात दिनों तक पूजा करें।सातवें दिन (शीतला सप्तमी) शाम को कुम्हार के घर से गणगौर भगवान और मिट्टी के दो कुंडे ले आयें। भगवान घर लाते समय बैंड-बाजा के साथ आये।
अष्टमी के दिन से बिजोरा जी की फूलो बनायें।मिट्टी के कुंडे में गेहू बोये। गणगौर में ईसर जी(शंकर भगवान),गणगौर माता (पार्वती माँ), मालन-माली का जोड़ा और एक विमलदास जी की मूर्तियाँ होती है। अष्टमी से इन सभी मूर्तियों की पूजा प्रतिदिन करें।

अंतिम दिन की पूजा विधि:-

सीरा(हलवा) पूड़ी तथा गुने बना ले। घरेलू परम्परा के अनुसार आठ या सोलह गुने बनायें। आखरी दिन गणगौर की दो बार पूजा होती है। पहले प्रतिदिन के जैसे पूजा करें। उसके बाद अपने घरेलू परम्परा के अनुसार पूजा करें।
पूजा में सीरा, पूड़ी, गेहू तथा गुने चढ़ाये जाते हैं। आधे गुने उठाकर ले लिये जाते हैं। विवाहित स्त्रियाँ दूसरी पूजा के पहले चोलिया बिछाकर गुने रखे जाते हैं। खुद के, भाई के, जवाई (पति के) के और सास के बराबर-बराबर गुने रखे जाते हैं। परम्परा के अनुसार आठ-आठ या सोलह-सोलह गुने सभी के लिये रखे जाते हैं।
चोले के ऊपर श्रृंगार का सामान और साड़ी रखें। पूजा के बाद सभी पर हाथ लगायें।
शाम को गणगौर का विसर्जन करें। विसर्जन के समय बैंड-बाजा बजवाये।चढ़ावे को माली को देवे। घर लौटकर कम-से-कम पाँच बधावे के गीत गायें।