गणगौर व्रत 2025 | Gangaur Vrat 2025
गणगौर व्रत चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है।गणगौर यानी गण(शिव) और गौर (पार्वती)। इस व्रत का प्रारम्भ होलिका दिन के दूसरे दिन से हो जाता है। यह मुख्यत: राजस्थान में मनाया जाता है। होलिका दहन के दूसरे दिन से हीं लड़कियाँ और स्त्रियाँ गौरी-शिव जी की मूर्ति बनाकर पूजा शुरु कर देती है। इसवर्ष यह व्रत 15 Mar, 2025 Saturday से प्रारम्भ है और 31 Mar, 2025 Monday को यह गणगौर व्रतपूर्ण होगा। चैत्र कृष्ण पक्ष की द्वीतीया को गवरजा माता अपने मायके आती है एवं आठ दिन के बाद ईसर(भगवान भोलेनाथ) उन्हें लिवाने आते हैं। चैत्र शुक्ल पक्ष की तृतीया को उनकी विदाई होती है।इसलिये गणगौर की पूजा होलिका दहन के दूसरे दिन से शुरु होती है। सभी लड़किया और स्त्रियाँ प्रतिदिन गौरी-शिव की पूजा करती हैं। प्रात:काल पूजन के लिये दूब और फूल एकत्रित किया जाता है। दूब और फूल से गणगौर माता की पूजा की जाती है। पूजा के दौरान विभिन्न तरह के लोक गीत गाये जाते हैं। गनगौर पूजन में कुँवारी लड़किया अपने मनचाहे वर को पाने का तथा विवाहित स्त्रियाँ अखण्ड सौभाग्य का वरदान माता पार्वती से माँगती है। चैत्र शुक्ल पक्ष द्वीतीया को किसी तालाब , नदी या पोखरे पर जाकर गौरी माता को पानी पिलाने की रस्मकी जाती है।चैत्र शुक्ल पक्ष तृतीया को चूरमे/गुने का भोग लगाया जाता है और दोपहर बाद गणगौर का विसर्जन किया जाता है।
गणगौर पूजन सामग्री:- (Gangaur Vrat Pujan Samagri)
• लकड़ी की चौकी या पटरा
• कलश(ताँबे का)
• मिट्टी के कुंडे(गमले)- 2
• दीपक (मिट्टी)
• हल्दी पाउडर
• कुमकुम
• मेहंदी
• गुलाल(अबीर)
• काजल
• चावल
• घी
• फूल
• दूब
• आम के पत्ते
• पान का पत्ता- 5
• कलश (पानी से भरा हुआ)
• नारियल
• सुपारी
• कपड़ा (गणगौर के लिये)
• डलिया या टोकरी (बाँस की)
• कपड़ा (लाल चुनरी)
गणगौर पूजन की विधी ( Gangaur festival pooja vidhi )
गणगौर की पूजा सोलह दिन तक की जाती है।कुँवारी तथा विवाहिता कन्या इस पूजा को करती है। नव विवाहिता कन्या पहली होली पर गणगौर की पूजा अपने मायके या ससुराल में करती है।इसमें सोलह दिन तक पूजा होती है। होलिका दहन के दूसरी दिन यह पूजा शुरु होती है। नव विवाहिता अपने पड़ोस के सोलह कुँवारी कन्याओं को एक-एक सुपारी देकर गणगौर पूजा का निमंत्रण देती है।सभी मिलकर नव विवाहिता के घर पर गणगौर की पूजा करती है।होली की राख या काली मिट्टी एकत्रित करते हैं ।
चौकी या लकड़ी के पाटे पर रोली से स्वास्तिक(सतिया) बनायें । चौकी पर दाहिनी ओर पानी से भरा कलश रखें । कलश के उपर पान की पाँच पत्ते रखें और पान के पत्ते के ऊपर नारियलर रखें।
सबसे पहले गणेश जी का पूजन करें। चौकी के एक तरफ साबुत सुपारी को गणेश जी के रूप में रखें।यही पर सवा रुपया भी रखें। अब गणेश जी की पूजा करें।
होली की राख या काली मिट्टी से छोटी-छोटी सोलह पिंडी बनायें। सभी पिंडीयों को चौकी पर रखें। सबसे पहले उन पिंडियों पर पानी के छींटे दें । उसके बाद कुमकुम और चावल से पूजा करें।
चौकी के पास हीं दीवाल पर कुमकुम,मेहंदी,हल्दी और काजल से टीका लगायें। कुँवारी कन्याएँ आठ-आठ टीके और विवाहित स्त्रियाँ सोलह टीके लगायें।
उसके बाद हाथ में दूब लेकर और पानी का कलश लेकर सोलह बार जोड़े के साथ गणगौर की पूजा गीत गा कर करें। पूजन के बाद गणगौर की कहानी के साथ-साथ गणेश जी की कहानी सुने या कहें।
कहानी के बाद पाटे का गीत गायें । उसके बाद हाथ जोड़कर प्रणाम करें । फिर कलश के जल लेकर सुर्यदेव को अर्घ्य अर्पित करें।
इसी प्रकार से सात दिनों तक पूजा करें।सातवें दिन (शीतला सप्तमी) शाम को कुम्हार के घर से गणगौर भगवान और मिट्टी के दो कुंडे ले आयें।भगवान घर लाते समय बैंड-बाजा के साथ आये।
अष्टमी के दिन से बिजोरा जी की फूलो बनायें।मिट्टी के कुंडे में गेहू बोये ।गणगौर में ईसर जी(शंकर भगवान ),गणगौर माता( पार्वती माँ),मालन-माली का जोड़ा और एक विमलदास जी की मूर्तियाँ होती है।अष्टमी से इन सभी मूर्तियों की पूजा प्रतिदिन करें। और गणगौर के तीज को सभी का विसर्जन करें।
गनगौर की कथा – Gangaur ki katha
एक समय महादेवजी ने पार्वती जी से कहा- “हम देश पर्यटन को जाना चाहते हैं।” पार्वतीजी ने कहा- “मैं भी आपके साथ चलूँगी।” महादेवजी ने माता पार्वती को बहुत समझाया की पर्यटन में बहुत परेशानी होगी, लेकिन पार्वती जी नहीं मानी । अत: महादेव जी, माता पार्वती और नारद जी के साथ पर्यटन को चल पड़े।
वे तीनों चलते-चलते एक गाँव में पहुँचे । उस दिन चैत्र शुक्ल की तृतीया तिथि यानी तीज थी। जब गाँव के लोगों को मालूम हुआ कि साक्षात शिव-पार्वती वहाँ पधारें हैं। तब गाँव की सभी स्त्रियाँ शिव-पार्वती जी के लिये भोग बनाने में लग गई।परंतु जो नीच कुल की स्त्रियाँ थी, वे केवल हल्दी-चावल और पुष्प लेकर हीं शिव-पार्वती की पूजा के लिये पहुँच गई।उन स्त्रियों के पूजा से प्रसन्न होकर माता पार्वती ने उन लोगों को सुहाग-रस(सौभाग्य का टीका लगाने की हल्दी) छिड़क दिया।वे सभी अटल सौभाग्य पाकर वहाँ से चली गई।
पीछे उच्च कुल की महिलाएँ सोलहों श्रृंगार कर के नाना प्रकार के नैवेद्य और पूजा की समग्रे के साथ शिव-पार्वती की पूजा करने को पहुँची।उनको देख कर महादेव जी ने पार्वती जी से कहा- “गौरी! तुमने सम्पूर्ण सुहाग-रस तो उन स्त्रियों में बाँट दिया। अब इनको क्या देती हो? ” तब पार्वती जी ने कहा- “हे प्रभु! आप चिंता ना करे। उनको ऊपरी पदार्थों से बना हुआ रस दिया है, इस कारण उनका सुहाग धोती से रहेगा परंतु मैं इन लोगों को अपनी ऊँगली चीर कर आधे रक्त का सउहाग-रस देते हूँ। अत: जिस किसी के भाग में मेरा दिया सुहाग-रस पड़ेगा, वह मेरी तरह तन-मन से सौभाग्यवती होगी। ”
जब स्त्रियाँ पास पहुँच गई और शिव-पार्वती जी का पूजन कर लिया। तब माता पार्वती ने अपनी ऊँगली चीर कर उन पर छिड़की।ऊँगली में से जो रक्त निकला उसी का एक-एक दो-दो छींटा सब पर पड़ा। जिस पर जैसा छींटा पड़ा उसे वैसा हीं सुहाग प्राप्त हुआ।
इसके बाद पार्वती जी ने शिव जी से कहा- “आप यहीं पर ठहरें।।मैं भी अपना पूजा कर के आती हूँ।” शिव जी से आज्ञा लेकर पार्वतीजी नदी के तट पर गई। वहाँ पर स्नान कर बालू से शिव जी की प्रतिमा बनाकर विधिवत पूजन किया ,बालू का हीं भोग लगाकर स्वयं प्रसाद क रूप में पाया और शिव जी के पास लौट आई।
जब पार्वती जी शिव जी के पास पहुँची तो शिव जी ने देर से आने का कारण पूछा। चूँकि पार्वती जी अपने पूजा का रहस्य नहीं बताना चाहती थी इसलिए उत्तर दिया कि वहाँ मेरे मायके वाले आ गये थे जिससे देर हो गई।
फिर शिवजी ने पूछा- “तुमने पूजन के बाद क्या प्रसाद चढ़ाया और क्या खुद पाया? ” पार्वती जी ने कहा- “हमारी भावजों ने हमको दूध-भात खिलाया। उसे खाकर चली आ रही हूँ।”
तब शिवा जी ने कहा- “हमको अकेल छोड़कर दूध-भात खाना उचित नहीं । हमें भी दूध-भात खिलाओ। ” पर्वती जी ने कहा- “आज तो दूध-भात का समय निकल गया है ।” परंतु शिवजी ने एक न माने और कहा- “भोजन न सही कम-से-कम सबसे मिल तो लेंगे।”
जब शिवजे चलने लगे तो पार्वती जी बड़ी दुविधा में पड़ गई कि अब इनको कहाँ ले चलूँ।यह सोचकर पार्वती जी ने मन-ही-मन शिव जी की अराधना करते हुये कहा-“हे प्रभु! मेरी लाज रखो।” इसके बाद वह शिवजी और नारद जी के पीछे-पीछे नदी की ओर चलने लगी। थोड़ी हीं दूर जाने पर नदी-किनारे एक सुंदर माया का महल दिखाई दिया। महलों के अंदर जाने पर शिवा जी के साले और सरहज पूरे परिवार के साथ मौजूद नजर आये। उन्होंने बहन-बहनोई का बड़े प्रेम से स्वागत किया।दो दिन बीतने पर पार्वती जी ने शिवजी से चलनेको कहा, लेकिन शिवजी नहीं माने और रुकने कि जिद करने लगे। पार्वती जी के बहुत कहने पर तीसरे दिन शिवजी पार्वती जी और नारद जी के साथ वहाँ से विदा हुये। चलते-चलते जब संध्या होने को हुई तो शिवजी ने पार्वती जी से कहा- “पार्वती! मैं अपनी माला वहीं भूल आया, अब उसे कैसे लाया जाये।” पार्वती जी ने कहा-“मैं खुद जाकर माला उठा लाती हूँ।” उस पर शिवजी ने कहा-“तुम इतनी दूर अकेली क्युँ जाओगी; हम सब तुम्हारे साथ चलते हैं।” पार्वती जी ने इस बात पर आपत्ति की। तब नारद जी ने कहा- “आप लोग इसी जगह पर रहिये, माला मैं उठा लाता हूँ।” पार्वती जी को संकोचवश कुछ कह नहीं पाई और नारद जी माया के महल की ओर चल पड़े।
नारद जी जब माया के महल के स्थान पर पहुँचे, तो उन्हें वहाँ पर घना वन नजर आया और चारों तरफ अंधकार था। नारद जी अंधकार में भटकने लगे, इतने बिजली चमकी और उन्हें एक वट-वृक्ष पर शिवजी की माला तँगी दिखाई पड़ी। नारद जी माला को लेकर वहाँ से शीघ्रता से चल दिये।
शिव जी के पास पहुँच कर माला देते हुये कहा- “धन्य हो प्रभु और धन्य है गौरा माई। वहाँ न कोई महल हैं न कोई मनुष्य गहन वन है, एक वृक्ष पर आपके माला टँगी थी। अब मेरी समझ में यह सब माता पार्वती की माया थी।”
तब पार्वती जी ने शिवजी की ओर देखते हुये कहा- “यह सब प्रभु की लीला है। ”
तब शिवजी ने कहा- “हे मुनि! आपने जो कुछ भी दृश्य देखा, वह पारव्ती की अनोखी माया का प्रतिफल है। वे अपने पार्थिव पूजन की बात आपसे गुप्त रखना चाहती थीं, इसलिए उन्होंने झूठा बहाना बनाया था। उस असत्य को सत्य करने के लिए उन्होंने अपने पतिव्रत धर्म की शक्ति से झूठे महल की रचना की। स्सच्चाई को उभारने के लिए ही मैंने माला लाने के लिए आपको दुबारा उस स्थान पर भेजा था। ” यह जानकर नारद जी ने पार्वती जी को प्रणाम करते हुये कहा- “माता! आप पतिव्रताओं में अग्रगण्य, सदैव सौभाग्यवती, आदि-शक्ति हैं। यह सब आपके पतिव्रत का प्रभाव है। जब स्त्रियाँ आपके नाम-मात्र के स्मरण से अटल सौभाग्य प्राप्त कर संसार की सम्पूर्ण सिद्धियाँ पा लेती हैं, तो आपके लिये यह कोई बड़े बात नहीं। ” इसके बाद महादेव और पार्वती जी अपने धाम को लौट गये । चूँकि पार्वती जी अपनी पूजा को गुप्त रखना चाहती थी इसलिये आज भी इस अवसर पर पुरुष मौजूद नहीं रहते हैं।
गणगौर की दूसरी कथा:- (Gangaur ki dusri katha
एक राजा था और एक माली ।राजा के खेत में चना बोया गया और माली ने पने खेत में दूब बोई।राजा का चना बढ़ता गया लेकिन माली का दूब घटता गया।यह देखकर माली ने सोचा कि राजा का चना बढ़ता जा रहा है लेकिन मेरा चना घटता जा रहा है।ऐसा क्यों।यह सोचकर ,अपने खेत की रखवाली के लिये खेत के पास छिपकर बैठ गया।उसने देखा कि गाँव की लड़कियाँ उसके खेत से दूब ले कर जा रही है। तब उसने उन लड़कियों में से किसी का लोटा, किसी की डोरी, वस्त्र एवं गहने छीन लिये और कहने लगा- “तुम सब मेरे खेत से दूब क्यों तोड़ कर ले जा रही हो? ” लड़कियों न उत्तर दिया- “हम गणगौर की पूजा के लिये दूब लेकर जाती हैं।” यह सुनकर माली ने उनके सामान लौटा दिये।
सोलहवें दिन गणगौर का पूजन कर लड़कियाँ एवं स्त्रियाँ प्रसाद, फल, लापसी आदि लेकर माली के घर आई। उन्होंने सभी सामग्री माली की मां को दे दिया और वापस चली गई। मालीके माँ ने सभी सामान कोठे के अंदर रख दिया। थोड़ी देर बाद माली आया और उसने अपनी मां से कुछ खाने के लिए मांगा। तब मां बोली- “गाँव की लड़कियां एवं महिलाएं आज खूब फल,लापसी आदि दे गई है। तू भर पेट खा ले, कोठे में रखी है।” मां के कहे अनुसार माली ने जैसे ही कोठा खोला, तो देखा कोठा हीरे,मोतियों से जगमगा रहा है। वहाँ अपार धन-सम्पदा पड़ी है। यह चमत्कार गणगौर माता की कृपा से हुआ था।