गंगा स्तोत्र हिंदी अर्थ सहित । Ganga Stotra in Hindi

अर्थ :-

ऊँ शिवस्वरूपा श्रीगंगाजी को नमस्कार है । कल्याणी गंगा को नमस्कार है । देवि गंगे! आप विष्णुरूपिणी हैं, आपको नमस्कार है।ब्रह्मस्वरूपा! आपको नमस्कार है। रुद्ररूपिणी! आपको नमस्कार है। शंकरप्रिया! आपको नमस्कार है, नमस्कार है।देवस्वरूपिणी! आपको नमस्कार है। ओषधिरूपा! आपको नमस्कार है। आप सबके सम्पूर्ण रोगोंकी श्रेष्ठ वैद्या हैं, आपको नमस्कार है। स्थावर और जंगम प्राणियों से प्रकट होनेवाले विषका आप नाश करनेवाली है, आपको नमस्कार है।संसाररूपी विषका नाश करनेवाली जीवनरूपा आपको नमस्कार है। आध्यात्मिक, आधिदैविक और आधिभौतिक – तीनों प्रकार के क्लेशोंका सन्हार करनेवाली आपको नमस्कार है। प्राणों की स्वामिनी आपको नमस्कार है, नमस्कार है।शान्ति का विस्तार करनेवाली शुद्धस्वरूपा आपको नमस्कार है। सबको शुद्ध करनेवाली तथा पापों की शत्रुस्वरूपा आपको नमस्कार है। भोग, मोक्ष तथा कल्याण प्रदान करनेवाली आपको बार-बार नमस्कार है। भोग और उपभोग देनेवाली भोगवती नामा से प्रसिद्ध आप पातालगंगा को नमस्कार है।मन्दाकिनी नामसे प्रसिद्ध तथा स्वर्ग प्रदान करनेवाली आप आकाशगंगा को बार-बार नमस्कार है।आप भूतल, आकाश और पाताल-तीन मार्गों से जानेवाली और तीनों लोकों की आभूषणस्वरूपा हैं, आपको बार-बार नमस्कार है। गंगाद्वार, प्रयाग और गंगासागर- संगम – इन तीन विशुद्ध तीर्थस्थानों में विराजमान आपको नमस्कार है। क्षमावती आपको नमस्कार है। गार्हपत्य, आहवनीय और दक्षिणाग्निरूप त्रिविध अग्नियोंमें स्थित रहनेवाली तेजोमयी आपको बार-बार नमस्कार है। आप ही अलकनन्दा हैं, आपको नमस्कार है। सुधाधारामयी आपको नमस्कार है। जगत् में मुख्य सरितारूप आपको नमस्कार है। रेवती-नक्षत्ररूपा आपको नमस्कार है। बृहती नामा से प्रसिद्ध आपको नमस्कार है। लोकों को धारण करनेवाली आपको नमस्कार है। सम्पूर्ण विश्व के लिये मित्ररूपा आपको नमस्कार है। सबको समृद्धि देकर आनन्दित करनेवाली आपको बारंबार नमस्कार है। आप पृथ्वीरूपा हैं, आपको नमस्कार है। आपका जल कल्याणमय है और आप उत्तम धर्मस्वरूपा हैं , आपको नमस्कार है, नमस्कार है। बड़े- छोटे सैकड़ों प्राणियोंसे सेवित आपको नमस्कार है। सबको तारनेवाली आपको नमस्कार है, नमस्कार है। संसार-बंधन का उच्छेद करनेवाली अद्वैतरूपा आपको नमस्कार है। आप परम शांत, सर्वश्रेष्ठ तथा मनोवांछित वर देनेवाली हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप प्रलयकालमें उग्ररूपा हैं,अन्य समय में सदा सुखका भोग करानेवाली हैं तथा उत्तम जीवन प्रदान करनेवाली हैं, आपको नमस्कार है।आप ब्रह्मनिष्ठ,ब्रह्मज्ञान देनेवाली तथा पापों का नाश करनेवाली हैं , आपको बार-बार नमस्कार है। प्रणतजनों की पीड़ा का नाश करनेवाली जगन्माता आपको नमस्कार है।आप समस्त विपत्तियों के शत्रुभूता तथा सबके लिये मंगलस्वरूपा हैं, आपके लिये बार-बार नमस्कार है।शरणागतों, दीनों तथा पीड़ीतों की रक्षामें संलग्न रहनेवाली और सबकी पीड़ा दूर करनेवाली देवि नारायणि! आपको नमस्कार है। आप पाप-ताप अथवा अविद्यारूपी मल से निर्लिप्त, दुर्गम दु:ख का नाश करनेवाली तथा दक्ष हैं, आपको बारम्बार नमस्कार है। आप पर और अपर सबसे परे हैं। मोक्षदायिनी गंगे! आपको नमस्कार है। गंगे ! आप मेरे आगे हों, गंगे! आप मेरे पीछे रहें, गंगे आप मेरे उभयपार्श्व में स्थित हों तथा गंगे! मेरी आपमें ही स्थिति हो । आकाशगामिनी कल्याणमयीगंगे! आदि, मध्य और अन्त में सर्वत्र आप हैं । गंगे! आप ही मूल-प्रकृति हैं, आप ही परम पुरुष हैं तथा आप ही परमात्मा शिवहैं; शिवे! आपको नमस्कार है।

जो श्रद्धापूर्वक इस स्तोत्र को पढ़ता और सुनता है, वह मन, वाणी और शरीर द्वारा होनेवाले पूर्वोक्त दस प्रकार के पापों से मुक्त हो जाता है। यह स्तोत्र जिसके घर में लिखकर रखा हुआ हो, उसी कभी अग्नि, चोर और सर्प आदि का भय नहीं होता। ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष में हस्त नक्षत्र सहित दशमी तिथि यदि बुधवार से योग हो ,तो उस दिन गंगाजीके जल में खड़ा होकर जो दस बार इस स्तोत्र का पाठ करता है, वह दरिद्र हो या असमर्थ, वह भी उसी फल को प्राप्त होता है, जो पूर्वोक्तविधि से यत्नपूर्वक गंगाजी की पूजा करनेपर प्राप्त होता है।