फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी कथा -

ब्राह्मण ने कहा- “ओ बहुरानी ! अब मैं कहाँ जाऊँ । छहों बहुओं ने फटकार दिया। तुम्हारे यहाँ व्रत सामग्री एकत्रित करने का कोई साधन नहीं दीख रहा। मैं स्वयं बहुत वृद्ध हूँ। हे कल्याणी बहु! मैं बार-बार सोचता हूँ कि इस व्रत से सिद्धि मिलेगी और सभी कष्टों का अंत होगा। ”
अपने ससुर की बात सुनकर छोटी बहू कहने लगी। छोटी बहू ने कहा- “हे पिताजी ! आप इतने दु:खी क्यों हो रहे हैं। आप अपनी इच्छा के अनुसार व्रत किजिए। मैं भी आपके साथ संकट नाशक व्रत को करूँगी। इससे हमारे दु:खों का निवारण होगा।”
इतना कहकर छोटी बहू घर के बाहर जाकर भिक्षा मांग लाई । अपने और ससुर के लिए अलग- अलग लड्डू बनाये। चंदन, फूल,धूप, अक्षत, फल, दीप, नैवेद्य और ताम्बूल- उसने सब अलग-अलग करके ससुर के साथ पूजन किया। पूजन के बाद उसने ससुर को सम्मान पूर्वक भोजन कराया। भोजन के अभाव में स्वयं कुछ भी न खाकर निराहार रही।

हे देवी ! अर्धरात्रि के बाद उसके ससुर विष्णुशर्मास को कै-दस्त होने लगे। जिससे उसके दोनों पैरों पर छीटें पड़ गये। उसने ससुर के पैर धुलाकर शरीर पोंछा।
वह शोक करने लगी कि मुझ हतभागिनी के कारण आपकी ऐसी दशा क्यों हुई ? हे पिताजी ! रात को अब मैं कहाँ जाऊँ ? मुझे आप कोई उपाय बतलाइये। रात-भर विलाप करते रहने के कारण अनजाने में उसका जागरण भी हो गया और सुबह हो गई ।
छोटी बहू की जब आँख खुली तो उसने देखा कि उसके घर में हीरा, मोती और मणियों का ढ़ेर लगा हुआ है। जिससे घर प्रकाशित हो रहा था। अब उसके ससुर के कै- दस्त भी बंद हो चुके थे।
आश्चर्य में पड़कर वह अपने ससुर से पूछने लगी- “यह क्या बात है ? यह सम्पत्ति किसकी है ? अरे ! इतना मणि-मूंगा आदि मेरे घर कहाँ से आ गये ? हे पिताजी ! क्या कोई हम लोगों को चोरी में फंसाने के उद्देश्य से तो घर में नहीं डाल गया है ? ”
बहू की बात सुनकर ब्राह्मण कहने लगा कि कल्याणी ! यह सब तुम्हारी श्रद्धा का फल है। तुम्हारी भक्ति से गणेश जी तुम पर प्रसन्न हो गये हैं। इस व्रत के प्रभाव से ही गणेश जी ने तुम्हे इतने सम्पत्ति दी है।