बुधाष्टमी

बुधवार को जब अष्टमी तिथि और शुक्ल पक्ष हो, तो वह बुधाष्टमी कहलाती है । इस व्रत को करने से मनुष्य को मोक्ष की प्राप्ति होती है । बुधाष्टमी का आठ व्रत करना चाहिये। बुधाष्टमी का व्रत २० जुन २०१८ और १७ अक्टूबर २०१८ (20 june 2018 and 17 october 2018) को है।
जो मनुष्य विधिपूर्वक बुधाष्टमी का व्रत करता है, वह सात जन्म तक जातिस्मर होता है । धन , धान्य, पुत्र, पौत्र, दीर्घ आयुष्य और ऐश्वर्य आदि संसार के सभी पदार्थों को प्राप्त कर अन्त समय में नारायण का स्मरण करता हुआ तीर्थ-स्थान में प्राण त्याग करता है और प्रलय पर्यन्त स्वर्ग में निवास करता है। जो इस विधान को सुनता है, वह भी ब्रह्महत्यादि पापों से मुक्त हो जाता है।

पूजन सामग्री:-

बुध भगवान की मूर्ति (यदि सम्भव हो तो स्वर्ण की ), पीला वस्त्र, कलश (मिट्टी का )- , धूप, दीप, अक्षत, चंदन, पुष्प, नैवेद्य (मोदक, घी का अपूप, वटक, श्वेत कसार से बने पदार्थ, सोहालक (खांडयुक्त अशोकवर्तिका), फल (आठ प्रकार के), बाँस की टोकरी (नैवेद्य अर्पित करने के लिये), दक्षिणा

पूजा विधि

प्रात:काल उठकर नदी, जलाशय या तालाब में स्नान करें; वहीं से नये कलश में जलभर कर पूजा के लिये लाये। पूजा गृह को शुद्ध कर लें। जल से भरे कलश को स्थापित करें। कलश में सोना छोड़ें । चौकी पर पीला वस्त्र बिछायें । उस पर बुध भगवान के विग्रह को स्थापित करें। मंत्र के द्वारा बुध भगवान की पूजा करें और एक-एक वस्तु अर्पित करें। नैवेद्य में आठ प्रकार के पकवान और फल अर्पित करें। पीला वस्त्र अर्पित करें। धूप, दीप, अक्षत, वस्त्र ,गंध, पुष्प, नैवेद्य एवं दक्षिणा अर्पित करते हुये निम्न मंत्र का उच्चारण करें:- ऊँ बुधाय नम:
ऊँ सोमात्मजाय नम:,
ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम:
ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम:
ऊँ ताराजाताय नम:
ऊँ सौम्यग्रहाय नम:
ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम:
पूजन के बाद बुधाष्टमी की कथा सुने अथवा सुनाये ।

बुधाष्टमी व्रत कथा तथा महात्म्य

भगवानश्री कृष्ण बोले- युधिष्ठिर ! अब मैं बुधाष्टमी व्रत का विधान बताता हूँ। जिसे करनेवाला कभी नरक का मुख नहीं देखता । इस विषय में एक आख्यान सुनें । सत्ययुग के प्रारम्भ में मनु के पुत्र राजा इल हुए । वे अनेक मित्रों तथा भृत्यों से घिरे रहते थे । एक दिन वे मृगया के प्रसंग से एक हिरण का पीछा करते हुए हिमालय पर्वते के समीप एक जंगल में पहुँच गये। उस वन में प्रवेश करते ही वे सहसा स्त्री-रूप में परिणत हो गये। वह वन शिवजी और माता पार्वतीजी का विहार –क्षेत्र था । वहाँ शिवजी की यह आज्ञा थी कि ‘जो पुरुष इस वन-क्षेत्र में प्रवेश करेगा, वह तत्क्षण ही स्त्री हो जायेगा।’ इसी कारण राजा इल भी स्त्री हो गये। अब वे स्त्री रूप में वन में विचरण करने लगे ।वे यह नहीं समझ सके कि मैं कहाँ आ गया हूँ । उसी समय चन्द्रमा के पुत्र कुमार बुध की दृष्टि उनपर पड़ी । उसके उत्तम रूपपर आकृष्ट हो बुध ने उसे अपनी स्त्री बना लिया। इला से एक पुत्र उत्पन्न हुआ, जिसका नाम पुरुरवा था । पुरुरवा से ही चन्द्रवंश का प्रारम्भ हुआ ।
जिस दिन बुध ने इला से विवाह किया उस दिन अष्टमी तिथि थी, इसलिये यह बुधाष्टमी जगत् मे पूज्य हुई । यह बुधाष्टमी सम्पूर्ण पापों का प्रशमन तथा उपद्रवोंका नाश करनेवाली है।
राजन ! अब मैं आपको एक दूसरी कथा सुना रहा हूँ – विदेह राजाओं की नगरी मिथिला में निमि नाम के एक राजा थे । वे शत्रुओं द्वारा लड़ाई के मैदान में मार डाले गये। उनकी स्त्री का नाम था उर्मिला । उर्मिला जब राज्य-च्युत एवं निराश्रित हो इधर-उधर घूमने लगी, तब अपने बालक और कन्या को लेकर वह अवन्ति देश चली गयी और वहाँ एक ब्राह्मण के घर में कार्यकर अपना निर्वाह करने लगी । वह विपत्ति से पीड़ित थी, गेहूँ पीसते समय वह थोड़े से गेहूँ चुराकर रख लेती और उसी से क्षुधा से पीड़ित अपने बच्चों का पालन करती । कुछ समय बाद उर्मिला का देहांत हो गया। उर्मिला का पुत्र बड़ा हो गया , वह अवन्ति से मिथिला आया और पिताके राज्य को पुन: प्राप्तकर शासन करने लगा। उसकी बहन श्यामला विवाह-योग्य हो गयी थी । वह अत्यन्त रूपवती थी। अवन्ति देश के राजा धर्मराज ने उसके उत्तम रूप की चर्चा सुन उसे अपनी रानी बना लिया।
एक दिन धर्मराज ने अपनी प्रिया श्यामला से कहा- “वैदेही नन्दिनी ! तुम और सभी कामों को तो करना, परंतु ये सात स्थान, जिनमें ताले बंद हैं, इनमें तुम कभी मत जाना ।” श्यामला ने ‘बहुत अच्छा’ कहकर पति की बात मान ली, परंतु उसके मन में कौतुहल बना रहा।
एक दिन जब धर्मराज अपने किसी कार्य में व्यस्त थे, तब श्यामला ने एक मकान का ताला खोलकर वहाँ देखा कि उसकी माता उर्मिला को अति भयंकर यमदूत बाँधकर तप्त तेल के कड़ाह में बार-बार डाल रहे हैं । लज्जित होकर श्यामला ने वह कमरा बंद कर दिया, फिर दूसरा ताला खोला तो देखा कि वहाँ भी उसकी माता को यमदूत शिलाके ऊपर रखकर पीस रहे हैं और माता चिल्ला रही है । इसी प्रकार उसने तीसरे कमरे को खोलकर देखा कि यमदूतउसकी माता के मस्तक में लोहे की कील ठोंक रहे हैं, इसी तरह चौथे में अति भयंकर श्वान उसका भक्षण कर रहे हैं, पाँचवें में लोहे के संदंश से उसे पीड़ित कर रहे हैं। छठें में कोल्हू के बीच ईख के समान पेरी जा रही है और सातवें स्थान पर ताला खोलकर देखा तो वहाँ भी उसकी माता को हजारों कृमि भक्षण कर रहे हैं और वह रुधिर आदि से लथपथ हो रही है।
यह देखकर श्यामला ने विचार किया कि मेरी माता ने ऐसा कौन-सा पाप किया, जिससे वह इस दुर्गति को प्राप्त हुई । यह सोचकर उसने सारा वृतान्त अपने पति धर्मराज को बतलाया।
धर्मराज बोले- “प्रिये ! मैंने इसीलिये कहा था कि ये सात ताले कभी न खोलना, नहीं तो तुम्हें वहाँ पश्चाताप होगा । तुम्हारी माता ने संतान के स्नेह से ब्राह्मण के गेहूँ चुराये थे, यह सब उसी कर्म का फल है । ब्राह्मण का धन स्नेह से भी भक्षण करे तो भी सात कुल अधोगति को प्राप्त होते हैं और चुराकर खाये तो जबतक चंद्रमा और तारे हैं, तब तक नरक से उद्धार नहीं होता ।जो गेहूँ इसने चुराये थे, वे ही कृमि बनकर इसका भक्षण कर रहे हैं।”

श्यामला ने कहा- “महाराज ! मेरी माता ने जो कुछ भी पहले किया, वह सब मैं जानती ही हूँ, फिर भी अब आप कोई ऐसा उपाय बतलायें, जिससे मेरी माता का नरक से उद्धार हो जाय।” इसपर धर्मराज ने कुछ समय विचार किया और कहने लगे – “प्रिये ! आज से सात जन्म पूर्व तुम ब्राह्मणी थी। उस समय तुमने अपनी सखियों के साथ जो बुधाष्टमी का व्रत किया था, यदि उसका फल तुम संकल्पपूर्वक अपनी माता को दे दो तो इस संकट से उसकी मुक्ति हो जायेगी ।” यह सुनते ही श्यामला ने स्नानकर अपने व्रत का पुण्यफल संकल्पपूर्वक माता के लिये दान कर दिया। व्रत के फल के प्रभाव से उसकी माता भी उसी क्षण दिव्य देह धरण कर विमान में बैठकर अपने पति सहित स्वर्गलोक को चली गयी और बुध ग्रह के समीप स्थित हो गयी।
राजन ! अब इस व्रत के विधान को भी आप सावधान होकर सुनें- जब-जब शुक्ल पक्ष की अष्टमी को बुधवारपड़े तो उस दिन एकभुक्त-व्रत करना चाहिये । पूर्वाह्न में नदी आदि में स्नान करे और वहाँ से जल से भरा नवीन कलश लाकर घर में स्थापित कर दे, उसमें सोना छोड़ दे और बाँस के पात्र में पकवान भी रखे । आठ बुधाष्टमियों का व्रत करे और आठों में क्रम से ये आठ पकवान – मोदक, घी का अपूप, वटक, श्वेत कसारसे बने पदार्थ, सोहालक (खांडयुक्त अशोकवर्तिका) और फल, पुष्प तथा फेनी आदि अनेक पदार्थ बुध को निवेदित कर बाद में स्वयं भी अपने इष्ट मित्रों के साथ भोजन करे। साथ ही बुधाष्टमी की कथा भी सुने । बिना कथा सुने भोजन न करे ।
बुध की एक माशे (८ रत्ती = एक माशा ) या आधे माशे की सुवर्णमयी प्रतिमाबनाकर गंध, पुष्प, नैवेद्य, पीत वस्त्र तथा दक्षिणा आदि से उसका पूजन करें ।पूजन के मंत्र इस प्रकार हैं:-
‘ऊँ बुधाय नम:, ऊँ सोमात्मजाय नम:, ऊँ दुर्बुद्धिनाशाय नम:, ऊँ सुबुद्धिप्रदाय नम:, ऊँ ताराजाताय नम:, ऊँ सौम्यग्रहाय नम: तथा ऊँ सर्वसौख्यप्रदाय नम:।’
तदनन्तर निम्नलिखित मंत्र पढ़कर मूर्ति के साथ-साथ भोज्य –सामग्री तथा अन्य पदार्थ ब्राह्मण को दान कर दे-
ऊँ बधोऽयं प्रतिगृह्णतु द्रव्यस्थोऽयं बुध: स्वयम्।
देयते बुधराजाय तुष्यतां च बुधो मम ॥
ब्राह्मण भी मूर्ति आदि ग्रहण कर यह मंत्र पढ़े :-
बुध: सौम्यस्तारकेयो राजपुत्र इलापति:।
कुमारो द्विजराजस्य य: पुरुरवस: पिता॥
दुर्बुद्धिबोधदुरितं नाशयित्वावयोर्बुध: ।
सौख्यं च सौमनस्यं च करोतु शशिनन्दन: ॥
इस विधिसे जो बुधाष्टमी का व्रत करता है, वह सात जन्म तक जातिस्मर होता है । धन , धान्य, पुत्र, पौत्र, दीर्घ आयुष्य और ऐश्वर्य आदि संसार के सभी पदार्थों को प्राप्त कर अन्त समय में नारायण का स्मरण करता हुआ तीर्थ-स्थान में प्राण त्याग करता है और प्रलय पर्यन्त स्वर्ग में निवास करता है । जो इस विधान को सुनता है, वह भी ब्रह्महत्यादि पापों से मुक्त हो जाता है।