श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी व्रत कथा
ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की द्वादशी को श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी व्रत करना चाहिये। यह व्रत दशमी के दिन से ही शुरु हो जाता है। उस दिन व्रती को नियमपूर्वक पूजन तथा अन्न ग्रहण करना चाहिये। एकादशी के दिन स्नान इत्यादि कर्म से निवृत होकर व्रत का संकल्प करना चाहिये।भगवान का मंत्र जप कर भूमि पर शयन करें। द्वादशी को विधिपूर्वक पूजन एवं अर्चना करें। श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी की कथा सुने । अगले दिन दान करने के पश्चात स्वयं भोजन करें।
दुर्वासा जी कहते हैं- “पहले पुत्र न होने पर महाराज दशरथ जी ने पुत्रकी कामना से वसिष्ठजी की बड़ी आराधना की एवं पुत्रोत्पति का उपाय पूछा। तब वसिष्ठा जी ने उन्हें यही विधान बताया। इस व्रत के रहस्य को जानकर राजा दशरथ ने इसका अनुसःठान किया, जिसके फलस्वरूप स्वयं भगवान श्रीहरि महान शक्तिशाली रामरूप में उनके पुत्र हुए। उस समय सनातन श्री हरि ने अपने को (राम, लक्ष्मणादि) चार रूपों में विभक्त कर लिया था। ” यह तो यहाँ की बात हुई अब परलोक की बात सुनो। जब तक इंद्र और सम्पूर्ण देवता स्वर्ग में रहते हैं तबतक इस व्रत को करनेवाला पुरुष स्वर्ग में विविध भोगों को भोगता है। वहाँ की अवधि समाप्त हो जाने पर वह पुन: मृत्य लोक में आता है।पृथ्वी पर आने पर वह सौ यज्ञ करनेवाला राजा होता है। जो इस व्रत को निष्काम भाव से करता है, उस पुरुष के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं। साथ ही उसे भगवान श्री हरि का कैवल्य-पद प्राप्त हो जाता है , जो स्वच्छ एवं सनातन है।