रोहिणी चन्द्र शयन व्रत | rohini chandra shayan vrat
जब पूर्णिमा तिथि को सोमवार हो अथवा पूर्णिमा को रोहिणी नक्षत्र हो, उस तिथि को रोहिणी चन्द्र शयन व्रत किया जाता है। यह व्रत रूप आरोग्य और आयु प्रदान करनेवाला है तथा यह पितरों को सर्वदा प्रिय है। इस व्रत के करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है। चंद्रमा के नाम कीर्तन द्वारा भगवान मधुसूदन की पूजा का यह प्रसंग जो नित्य पढ़ता अथवा सुनता है, उसे भगवान उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं तथा वह भगवान श्रीविष्णु के धाम में स्थान पाता है।
रोहिणी चन्द्र शयन व्रत विधि:-
प्रात:काल उठकर पंचगव्य और सरसों मिश्रित जल से स्नान करे (स्नान नदी, तालाब या जलाशय में करें) । स्नान के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें।
निम्न मंत्र का १०८ बार जाप करे:-
मंत्र
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वत:सोम वृष्णयम्। भवा वाजस्य संगथे॥
अर्थ: हे सोम! सोम! चारों ओर की विस्तृत तेजस्विता आप में प्रवेश करे। आप अपने शक्ति-शौर्य से सभी प्रकार से वृद्धिको प्राप्त करें और यज्ञादि सत्कर्मों के लिए आवश्यक अन्न प्राप्ति के साधनरूप आप हमारे पास आएँ(हमें उपलब्ध हों)
मंत्र
आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिर: शुभि:। भवा न: सप्रथस्तम: सखा वृधे॥
अर्थ:- हे अति आह्लादक सोम! अपने दिव्य-गुणों की यश-गाथाओं से चातुर्दिक व्यापक विस्तार को प्राप्त करें तथा हमारे विकास के निमित्त मित्ररूप में सहयोग करें।
अथवा अत्यन्त भक्तिपूर्वक ‘सोमाय नम:’, ‘वरदाय नम: ’ , ‘विष्णवे नम:’ इन मंत्रों का जाप करें।
घर आकर पूजा गृह में पूजन सामग्री एकत्रित कर के रख लें एवं भगवान मधुसूदन के प्रतिमा के सामने आसन पर बैठ जायें। तत्पश्चात् भगवान के श्री अंगों की पूजा निम्न मंत्रों के द्वारा करें:-
‘सोमाय शान्ताय नम:’ से भगवान के चरणों का पूजन करें।
‘अनन्तधाघ्रे नम:’ का उच्चारण करके उनके घुटनों और फिर पिंडलियों का पूजन करें।
‘जलोदराय नम:’ से दोनों जाँघों का पूजन करें।
‘कामसुखप्रदाय नम:’ से चन्द्रस्वरूप भगवान के कटिभाग का पूजन करें। ‘अमृतदोराय नम:’ से उदर का पूजन करें।
‘शशाङ्काय नम:’ से नाभि का पूजन करें।
‘चन्द्राय नम:’ से मुखमण्डलका पूजन करें।
‘द्वीजानामधिपाय नम:’ से दाँतों का पूजन करें।
‘चन्द्रमसे नम:’ से मुँह का पूजन करें।
‘कौमोदवनप्रियाय नम:’ से ओठों का पूजन करें।
‘वनौषधीनामधिनाथाय नम:’ से नासिकाका पूजन करें|
‘आनन्दबीजाय नम:’ से दोनों भौहों का पूजन करें।
‘इन्दीवरव्यासकराय नम:’ से भगवान श्रीकृष्ण के कमल सदृश नयन का पूजन करें।
‘समस्तासुरवन्दिताय दैत्यनिषूदनाय नम:’ से दोनों कानों का पूजन करें।
‘उदधिप्रियाय नम:’ से ललाट का पूजन करें।
‘सुषुम्नाधिपतये नम:’ से केशों का पूजन करें।
‘शशाङ्काय नम:’ से मस्तकका पूजन करें।
‘विश्वेश्वराय नम:’ से भगवान मुरारिके किरीट का पूजन करें।
फिर निम्न मंत्र के उच्चारण के द्वारा भगवान के सामने मस्तक झुकाकर प्रणाम करें:-
‘रोहिणीनाम धेयलक्ष्मी सौभाग्यसौख्यामृतसागराय पद्मश्रिये नम:’
अर्थ:- रोहिणी नाम धारण करनेवाली लक्ष्मी के सौभाग्य और सुखरूप अमृत के समुद्र तथा कमलकी-सी कान्तिवाले भगवान् को नमस्कार है।
इसके बाद धूप, दीप, नैवेद्य आदि से रोहिणीदेवी का पूजन करें। रात्रि को भूमि पर सोये। गले दिन प्रात:काल उठक्र नित्य कर्म कर ब्राह्मणों को घृत, सुवर्ण तथा जल भरे कलश दन करें। दान के समय ‘पापविनाशाय नम:’ का उच्चारण करें।शाम के समय नमक रहित भोजन, दूध तथा घी के साथ ग्रहण करें। पुराण और इतिहास की कथा सुनें। इस प्रकार से एक-वर्ष तक पूजन करें। उसके बाद उद्यापन करें।
रोहिणी चन्द्र शयन व्रत महात्म्य
महाराज युधिष्ठिर ने पूछा- ‘भगवान! जिस व्रत का अनुष्ठान करने से मनुष्य प्रत्येक जन्म में दीर्घायु , नीरोगता, कुलीनता और अभ्युदय से युक्त हो राजा के कुल में जन्म पाता है, उस व्रत का स्म्यक् प्रकार से वर्णन कीजिये ।’
भगवान् श्रीकृष्ण बोले- राजन! आपने बड़ी उत्तम बात पूछी है। अब मैं अक्षय स्वर्ग-प्राप्ति कारक परम गोपनीय रोहिणी चन्द्र शयन नामक व्रत का वर्णन कर रहा हूँ। इसमें चन्द्रमा के नामों से भगवान नारायण की प्रतिमा का पूजन करना चाहिये। जब कभी सोमवार के दिन पूर्णिमा तिथि हो अथवा पूर्णिमा को रोहिणी नक्षत्र हो, उस दिन मनुष्य प्रात: पंचगव्य और सरसों के दाने से युक्त जल से स्नान करे तथा विद्वान पुरुष निम्न मंत्र का १०८ बार जाप करे:-
आ प्यायस्व समेतु ते विश्वत:सोम वृष्णयम्।भवा वाजस्य संगमे॥
अर्थ: हे सोम! सोम! चारों ओर की विस्तृत तेजस्विता आप में प्रवेश करे।आप अपने शक्ति-शौर्य से सभी प्रकार से वृद्धिको प्राप्त करें और यज्ञादि सत्कर्मों के लिए आवश्यक अन्न प्राप्ति के साधनरूप आप हमारे पास आएँ(हमें ऊपलब्ध हों)
आप्यायस्व मदिन्तम सोम विश्वेभिर: शुभि:।
भवा न: सप्रथस्तम: सखा वृधे॥
अर्थ:- हे अति आह्लादक सोम! अपने दिव्य-गुणों की यश-गाथाओं से चातुर्दिक व्यापक विस्तार को प्राप्त करें तथा हमारे विकास के निमित्त मित्ररूप में सहयोग करें।
अथवा अत्यन्त भक्तिपूर्वक ‘सोमाय नम:’, ‘वरदाय नम: ’ , ‘विष्णवे नम:’ इन मंत्रों का जाप करें।
और पाखण्डियों-विधर्मियों से बातचीत न करें। जप के बाद घर आकर फल-फूल आदि के द्वारा भगवान श्रीमधुसूदन के अंगों की पूजा करें।साथ हीं चंद्रमा के नामों का उच्चारण करता रहे। सुगंधित पुष्प, नैवेद्य और धूप आदि के द्वारा इन्दुपत्नी रोहिणीदेवीका भी पूजन करे।
इसके बाद रात्रिके समय भूमिपर शयन करे और सबेरे उठकर स्नान के पश्चात ‘पापविनाशाय नम:’ का उच्चारण करके ब्राह्मण को घृत और सुवर्णसहित जलसे भरा कलश दान करे। फिर दिनभर उपवास करने के पश्चात गोमूत्र पीकर खारे नमक से रहित अन्नके अट्ठाईस ग्रास, दूध और घी के साथ भोजन करे । तदनंतर इतिहास-पुराण का श्रवण करे। राजन! चंद्रस्वरूप भगवान विष्णु को कदम्ब, नील कमल, केवड़ा, जातीपुष्प,कमल, शतपत्रिका, बिना कुम्हलाये कुब्ज के फूल , सिन्दुवार , चमेली , अन्यान्य श्वेत पुष्प, करवीर- पुष्प तथा चम्पा- ये फूल चढ़ाने चाहिये । उपर्युक्त फूलोंकी जातियों में से एक –एक को श्रावण आदि महीनोंमें क्रमश: अर्पण करे। जिस महीने में व्रत प्रारम्भ किया जाय, उस समय जो भी पुष्प सुलभ हों, उन्हीं के द्वारा श्री हरि का पूजन करें।
इस प्रकार एक वर्ष तक इस व्रत का विधिवत अनुष्ठान करके समाप्ति के समय व्रती को चाहिये कि वह दर्पण तथा शयनोपयोगी सामग्रियों के साथ शय्यादान करे। रोहिणी और चन्द्रमा – दोनों की सुवर्णमयी मूर्ति बनावाये ।उनमें चन्द्रमा की छ: अंगुल की और रोहिणी की चार अंगुल की होनी चाहिये । आठ मोतियों से युक्त तथा दो श्वेत वस्त्रोंसे आच्छादित उन प्रतिमाओं को अक्षत से भरे हुए काँसेके पात्र में रखकर दुग्धपूर्ण कलश के ऊपर स्थापित कर दे तथा पूर्वाह्न के समय अगहनी चावल, ईख और फल के साथ उसे मंत्रोच्चारण पूर्वक दान करे। फिर वस्त्र और दोहिनीके साथ जिसका मुख (थूथून ) सुवर्ण तथा खुर चाँदी से मढ़े गये हों ऐसे दूध देनेवाली श्वेत गौ तथा सुंदर शंख प्रस्तुत करें।फिर उत्तम गुणों से युक्त ब्राह्मण-दम्पत्ति को बुलाकर उन्हें आभूषणों से अलंकृत करें तथा मन में यह भावना रखें कि ब्राह्मण-दम्पत्तिके रूप में रोहिणी सहित चंद्रमा हीं विराजमान हैं। तत्पश्चात इनकी इस प्रकार प्रार्थना करे- ‘श्रीकृष्ण! जिस प्रकार रोहिणीदेवी चंद्रस्वरूप आपकी शय्या को छोड़कर अन्यत्र नहीं जाती है, उसी तरह मेरा भी इन विभूतियों से बिछोह न हो। चंद्रदेव ! आप ही सबको परम आनंद और मुक्ति प्रदान करनेवाले हैं। आपकी कृपा से मुझे भोग और मोक्ष दोनों प्राप्त हों तथा आपमें मेरी सदा अनन्य भक्ति बनी रहे।’
इस प्रकार विनय कर शय्या ,प्रतिमा तथा धेनु आदि सब कुछ ब्राह्मण को दान कर दे।
राजन! जो इस संसार से भयभीत होकर मोक्ष प्राप्त करना चाहता है , उसके लिये यही व्रत सर्वोत्तम है। यह रूप आरोग्य और आयु प्रदान करनेवाला है तथा यह पितरों को सर्वदा प्रिय है। जो पुरुष इसका अनुष्ठान करता है, वह त्रिभुवन का अधिपति होकर इक्कीस क्ल्पों तक चंद्रलोक मे निवासकरता है। जो स्त्री इस रोहिणीचन्द्रशयन नामक व्रत का अमुष्ठान करती है , वह भी उसी पूर्वोक्त फल को प्राप्त करती है। साथ ही वह आवागमन से मुक्त हो जाती है। चंद्रमा के नाम कीर्तन द्वारा भगवान मधुसूदन की पूजा का यह प्रसंग जो नित्य पढ़ता अथवा सुनता है , उसे भगवान उत्तम बुद्धि प्रदान करते हैं तथा वह भगवान श्रीविष्णु के धाम में जाकर देवसमूह द्वारा पूजित होता है।