पौष संकष्टी चतुर्थी व्रत कथा Page 2/4

बलशाली बालि रावणको अपनी काँख में दबाये हुए आकाशमार्ग द्वारा किष्किन्धापुरी में आया और उस बन्दी रावण को अपने पुत्र अंगद के लिए खिलौने के रूप में दे दिया। रावण के गले में रस्सी बाँधकर अंगद ने उसे नगर में घुमाना शुरु कर दिया । विश्वविजयी रावण की ऐसी हालत देखकर सभी नगरवासियों ने अट्टहास किया। जनता कहने लगी- अरे देखो तो सही, यह विश्वविजेता रावण आज राजकुमार द्वारा सड़कों पर घुमाया जा रहा है। पुरवासियों की बात से रावण बहुत लज्जित होकर उसासें लेने लगा। उसका दर्प चूर हो गया। उसने अपने नाना पुलस्त्य मुनि का स्मरण किया अपने नाती की दीन पुकार से मुनि को आश्चर्य हुआ कि उसके नाती की ऐसी दशा क्यों कर हुई। अत्यंत गर्व करने से देव, दानव, मनुष्य आदि सभी का पतन अवश्यम्भावी होता है। रावण के समीप आकर मुनि ने पूछा कि तुमने मुझे क्यों याद किया है?