परशुराम द्वादशी / जामदगन्य द्वादशी व्रत

वैशाख मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को परशुराम द्वादशी या जामदगन्य द्वादशी व्रत होता है । इस तिथि को भगवान विष्णु के अवतार परशुराम जी की पूजा की जाती है । इस व्रत के प्रभाव से मनुष्य को संतान की प्राप्ति होती है । जो यह व्रत करता है, उसे सुपुत्र तथा जीवनभर विद्या, श्री और कांति सब सुलभ हो जाती है । इस व्रत को करनेवाले व्यक्ति एक कल्पतरु तक आनंद करते हुए ब्रह्माजी के लोक में रहते हैं । अगले जन्म में वे चक्रवर्ती राजा होते हैं और दीर्घायु होते है ।

परशुराम द्वादशी / जामदगन्य द्वादशी व्रत पूजा सामग्री:-

परशुराम जी की मूर्ति
कलश- 4
वस्त्र- 3
चौकी
पात्र- 4
तिल
धूप
दीप
अक्षत
चंदन
पुष्प
पुष्पमाला
नैवेद्य

परशुराम द्वादशी / जामदगन्य द्वादशी व्रत व्रत विधि:-

वैशाख मास की दशमी तिथि को नियमपूर्वक भगवान श्री हरि का पूजन करें । उस समय पवित्र वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक हवन करें । प्रसन्न मन से रहकर व्रती को पुरुष भली-भाँति सिद्ध किया हुआ हवन के उपयोग मे लाया जानेवाला अन्न ग्रहण करना चाहिये। फिर कम-से-कम पाँच पग दूर जाकर अपने पैर धोये। पुन: एकादशी तिथि को प्रात: काल उठकर शौच के बाद आठ अंगुलकी लम्बी दतुअन से मुख को शुद्ध करें । दतुअन के लिये किसी दूधवाले वृक्ष का लकड़ी उपयोग करे। इसके बाद विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। शरीर के नौ द्वार हैं, उन सभी द्वारों को स्पर्श कर फिर भगवान् जनार्दन का ध्यान करे। ध्यान का प्रकार यह है-

इस प्रकार कहकर दिन में नियमपूर्वक उपवास करे। रात्रि के समय देवाधिदेव भगवान नारायण के समीप बैठकर ‘ऊँ नमो नारायणाय’ इस मंत्र का जप कर व्रती को सो जाना चाहिये। फिर द्वादशी तिथि को प्रात:काल होनेपर व्रती पुरुष समुद्रतक जानेवाली नदी अथवा दूसरी भी किसी नदी या तालाबपर जाकर अथवा घर पर सन्यमपूर्वक रहकर हाथ में पवित्र मिट्टी लेकर यह मंत्र पढ़े-

क्रमश:

इस प्रकार का विधान सम्पन्नकर मिट्टी और जल हाथमें ले अपने सिर पर लगाये। साथ ही शेष बची हुई मृतिका को तीन बार समस्त अंगों में लगाये । फिर उपर्युक्त वारुण मंत्र पढ़कर विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान करने के पश्चात संध्या-तर्पण आदि नित्य-नियम सम्पन्न कर देवालय में जाये।
उसके बाद भक्तिपूर्वक भगवान श्रीहरि के अवतार परशुरामजी का निम्न मंत्रों से हाथ में अक्षत, कुंकुम, पुष्प एवं रोली लेकर पूजन करें:-

क्रमश:

इसके बाद उनके सामने चार जलपूर्ण कलश स्थापित करे। उन कलशोंको मालाओं से अलंकृत कर उनपर तिल से भरे पात्र रखे । इन चार कलशों को चार समुद्र मानकर उनके मध्यभाग में एक चौकी को स्थापित करें। उस चौकी के ऊपर भगवान् परशुराम की सुवर्ण की मूर्ति स्थापित करें। दो वस्त्र अर्पित करें । प्रतिमा के दाहिने हाथ में फरसा धारण कराये,फिर उसकी पुष्प,चंदन एवं अर्घ्य आदि उपचारों से पूजा करे। भगवान् के सामने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूरी रात जागरण करे । प्रात:काल सुर्योदय होनेपर स्नान कर, पूजा करें । उसके बाद वह प्रतिमा और दक्षिणा ब्राह्मण को दे । उसके बाद भोजन करें।