पद्मनाभ द्वादशी व्रत

आश्विन मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को पद्मनाभ द्वादशी व्रत होता है । इस वर्ष १० अक्टूबर अगस्त (बृहस्पतिवार), २०१९ को है। इस तिथि को भगवान पद्मनाभ की पूजा की जाती है । इस व्रत को करनेवाले पुत्र-पौत्र और उत्तम-से-उत्तम भोगों से सम्पन्न होहोकर अंत में भगवान पद्मनाभ के लोक को प्राप्त होते हैं।

पद्मनाभ द्वादशी व्रत पूजा सामग्री:-

∗पद्मनाभ जी की मूर्ति
∗कलश- 4
∗वस्त्र- 3
∗चौकी
∗पात्र- 4
∗तिल
∗धूप
∗दीप
∗अक्षत
∗चंदन
∗पुष्प
∗पुष्पमाला
∗नैवेद्य

पद्मनाभ द्वादशी व्रत विधि:-

आश्विन मास की दशमी तिथि को नियमपूर्वक भगवान श्री हरि का पूजन करें। उस समय पवित्र वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक हवन करें । प्रसन्न मन से रहकर व्रती पुरुष को भली-भाँति सिद्ध किया हुआ हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिये। फिर कम-से-कम पाँच पग दूर जाकर अपने पैर धोये। पुन: प्रात: काल उठकर शौच के बाद आठ अंगुलकी लम्बी दतुअन से मुख को शुद्ध करें । दतुअन के लिये किसी दूधवाले वृक्ष का लकड़ी उपयोग करे। इसके बाद विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। शरीर के नौ द्वार हैं, उन सभी द्वारों को स्पर्श कर फिर भगवान पद्मनाभ का ध्यान करे। ध्यान का प्रकार यह है-

इस प्रकार कहकर दिन में नियमपूर्वक उपवास करे। रात्रि के समय देवाधिदेव भगवान नारायण के समीप बैठकर ‘ऊँ नमो नारायणाय’ इस मंत्र का जप कर व्रती को सो जाना चाहिये। फिर द्वादशी तिथि को प्रात:काल होनेपर व्रती पुरुष समुद्र तक जानेवाली नदी अथवा दूसरी भी किसी नदी या तालाब पर जाकर अथवा घर पर सन्यमपूर्वक रहकर हाथ में पवित्र मिट्टी लेकर यह मंत्र पढ़े-

फिर जल के देवता वरुणसे प्रार्थना करे-

इस प्रकार का विधान सम्पन्नकर मिट्टी और जल हाथमें ले अपने सिर पर लगाये। साथ ही शेष बची हुई मृतिका को तीन बार समस्त अंगों में लगाये । फिर उपर्युक्त वारुण मंत्र पढ़कर विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान करने के पश्चात संध्या-तर्पण आदि नित्य-नियम सम्पन्न कर देवालय या फिर घर में बने पूजा गृह में जाये ।
सभी पूजन सामग्री एकत्रि कर लें। आसन पर बैठ जाये। हाथ में अक्षत, कुंकुम, रोली एवं पुष्प लेकर भगवान पद्मनाभ की निम्न मंत्रों से पूजन करें:-
∗ऊँ पद्मनाभाय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के चरण की पूजा करें ।
∗ऊँ पद्मयोनये नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के कटिभाग की पूजा करें ।
∗ऊँ सर्वदेवाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के उदर की पूजा करें ।
∗ऊँ पुष्कराक्षाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के हृदय की पूजा करें ।
∗ऊँ अव्ययाय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के भुजाएँ की पूजा करें ।
∗ऊँ प्रभवाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के सिर की पूजा करें ।
∗ऊँ सुदर्शनाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के सुदर्शं चक्र की पूजा करें ।
∗ऊँ कौमोदक्यै नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) भगवान पद्मनाभ के गदा की पूजा करें ।

इसके बाद सामने चार जलपूर्ण कलश स्थापित करे। उन कलशोंको मालाओं से अलंकृत कर उनपर तिल से भरे पात्र रखे । इन चार कलशों को चार समुद्र मानकर उनके मध्यभाग में एक चौकी को स्थापित करें। उस चौकी के ऊपर भगवान पद्मनाभ की सुवर्ण की मूर्ति स्थापित करें। दो वस्त्र अर्पित करें । तत्पश्चात् पुष्प,चंदन एवं अर्घ्य आदि उपचारों से पूजा करे। द्वादशी की कथा सुने।भगवान् के सामने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूरी रात जागरण करे । प्रात:काल सुर्योदय होनेपर स्नान कर, पूजा करें । उसके बाद वह प्रतिमा और दक्षिणा ब्राह्मण को दे । उसके बाद भोजन करें।
हे मुने! यह विधि आश्विन मास की एकादशी व्रत की कही गयी है। इस प्रकार नियम के साथ यदि व्रत किया जाय तो उसका जो प्रभाव होता है उसे कहता हूँ सुनो।