निर्जला एकादशी व्रत कथा (Page 2/6)

भीमसेन की बात सुनकर व्यासजी ने कहा- “यदि तुम्हें स्वर्गलोक की प्राप्ति अभीष्ट है और नरक को दूषित समझते हो तो दोनों पक्षों की एकादशी को भोजन न करना।”
भीमसेन बोले- “महाबुद्धिमान पितामह! मैं आपके सामने सच्ची बात कहता हूँ एक बार भोजन करके भी मुझसे व्रत नहीं किया जा सकता। फिर उपवास करके तो मैं रह ही कैसे सकता हूँ। मेरे उदर में वृक नामक अग्नि सदा प्रज्वलित रहती है; अत: जब मैं बहुत अधिक खाता हूँ, तभी यह शांत होती है।
इसलिये महामुने ! मैं वर्षभर में केवल एक ही उपवास कर सकता हूँ; जिससे स्वर्ग की प्राप्ति सुलभ हो तथा जिसके करने से मैं कल्याण का भागी हो सकूँ, ऐसा कोई एक व्रत निश्चय करके बताइये। मैं उसका यथोचित रूप से पालन करूँगा।”