महेश नवमी | Mahesh Navami

ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की नवमी को ‘महेश नवमी’ का त्योहार मनाया जाता है। यह त्योहार मुख्य रूप से मध्य प्रदेश के माहेश्वरी समाज के द्वारा मनाया जाता है। इस तिथि को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा एवं आराधना की जाती है। ऐसे मान्यता है कि इस तिथि से हीं माहेश्वरी समाज के पूर्वजों ने अपना क्षत्रिय वंश परम्परा को छोड़कर व्यापार के कार्य को अपनाया था। यह महेश नवमी माहेश्वरी समाज के उत्पत्ति का दिन है।इस दिन अनेक प्रकार के धार्मिक तथा सांस्कृतिक कार्यक्रम होते है। भगवान की शोभायात्र निकाली जाती है। महा आराती भी होती है। जगह-जगह पर अनेकों प्रकार के शोभा यात्रा एवं उत्सव का आयोजन किया जाता है।
इस महेश नवमी के उत्सव के पीछे एक कथा भी है। कहते हैं कि माहेश्वरी समाज के पूर्वज क्षत्रिय वंश के थे। लेकिन ऋषियों के शाप के कारण ये लोग शिला के रूप में परिवर्तित हो गये थे। ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष नवमी के दिन ही भगवान महेश और माता पार्वती ने इन 72 क्षत्रियों को शाप से मुक्त करवाया था और इन्हें पुनर्जीवन दिया। उसके बाद भगवान महेश ने कहा- आज से तुम सभी माहेश्वरी के नाम से जाने जाओगे।
ये सभी ७२ क्षत्रिय को शाप से मुक्ति भगवान महेश के कृपा से मिली थी इसलिये ये माहेश्वरी कहलाये। शापमुक्ति के तिथि को ज्येष्ठ शुक्ल पक्ष की नवमी थी इसलिये इस तिथि को भगवान महेश के नाम से महेश नवमी का त्योहार मनाया जाता है।

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