माघ स्नान
इस वर्ष माघ स्नान ११ जनवरी, २०२० (शनिवार) –पौष पूर्णिमा से आरम्भ होगा और ०९ फरवरी,२०२० (रविवार)- माघ पूर्णिमा को समाप्त होगा।
माघ मास में सभी जलाशय, नदी, तालाब, कुण्ड का जल गंगाजल की तरह पवित्र हो जाता है। माघ मास में पवित्र नदियों मे स्नान करने से शरीर में एक अलौकिक ऊर्जा का संचार होता है। पौष मास की पूर्णिमा से लेकर माघ मास की पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन प्रात:काल ब्रह्मा मुहुर्त में उठकर स्नान करना चाहिये। उसके बाद भगवान नारायण की पूजा करें। इस प्रकार स्नान और ध्यान करनेसे मनुष्य को सभी पापों से छुटकारा मिल जाता है।
माघ मास में गंगा,यमुना,सरस्वती, कावेरी ,नर्मदा ,संगम इत्यादि में नदियों मे स्नान करने सए सभी पापों का नाश होता है। यदि पूरे मास सम्भव ना हों तो कम-से-कम एक दिन किसी एक पवित्र नदी में जरूर स्नान ,दान,पूजा और उपवास करें।माघ मास में प्रात:काल स्नान करने से स्वर्ग के प्राप्ति होती है। माघ मास में स्नान और दान करने से वैकुण्ठ लोक की प्राप्ति होती है।
माघ स्नान विधि:- - (Maagh Snaan Vidhi)
पौष पूर्णिमा के दिन स्नान कर हाथ में जल लें कर संकल्प करें:-
॥स्वर्गलोक चिरवासो येषां मनसि वर्तते यत्र काच्पि जलै जैस्तु स्नानव्यं मृगा भास्करे॥
.संकल्प के बाद जल भूमि पर छोड़ दें।
उसके बाद भगवान नारायण की पूजा करें। पौष पूर्णिमा से लेकर माघ पूर्णिमा तक प्रत्येक दिन प्रात:काल स्नान कर पूजन करें। माघ पूर्णिमा के दिन स्नान के बाद कम्बल,तिल, वस्त्र तथा अन्य सामग्री ब्राह्मणों को दान करें।
माघ स्नान की कथा- Story Of Magh Snaan:-
एक बार महाराज दिलीप ने मुनि वसिष्ठ से पूछा- “हे महामुने! माघ-स्नान का महात्म्य सुनने की मेरी बड़ी इच्छा है। जिस विधि से इसको करना चाहिये , वह मुझे बताइये।”
वसिष्ठजी ने कहा- “राजन! मैं तुम्हें माघ स्नान का फल बतलाता हूँ, सुनो। जो लोग होम, यज्ञ तथा इष्टापूर्त कर्मों के बिना ही उत्तम गति प्राप्त करना चाहते हों , वे माघ में प्रात:काल बाहर के जल में स्नान करें। जो गौ, भूमि, तिल, वस्त्र, सुवर्ण और धान्य आदि वस्तुओं का दान किये बिना ही स्वर्गलोक में जाना चाहते हों, वे माघ मास में सदा प्रात:काल स्नान करें।
जिन लोगों ने माघ में प्रात:स्नान, नाना प्रकार का दान और भगवान विष्णु का स्तोत्र –पाठ किया है, वे ही दिव्यधाम में आनन्दपूर्वक निवास करते हैं। यदि सकाम भाव से माघस्नान किया जाय तो उससे मनोवाञ्छित फल की सिद्धि होती है । अन्य पुण्यों से स्वर्ग में गये हुये मनुष्य पुण्य समाप्त होने पर वहाँ से लौट आते हैं, किंतु माघ-स्नान करनेवाले वहाँ से कभे लौट कर नहीं आते। माघ-स्नान से बढ़कर कोई पवित्र और पापनाशक व्रत नहीं है।माघ स्नान का प्रारम्भ पौष पूर्णिमा के दिन से हो जाता है।
स्कंद पुराण की कथा:-
प्राचीन काल मे नर्मदा नदी के किनारे शुभव्रत नाम के एक ब्राह्मण रहते थे। वे वेद शास्त्रों के प्रकाण्ड पंडित थे। लेकिन वे धर्म कर्म से ज्यादा धन संग्रहण में तल्लीन रहते थे। वृद्धावस्था आने पर वे कई व्याधियों से ग्रसित हो गये। एक दिन उनके मन में विचार आया कि अब मुझे अपने परलोक सुधारने के लियेकुछ कर्म करने चाहिये। दैवयोग से उन्हें माघ सनान की विशेषता वाली श्लोक का स्मरण हो आया।
'माघे निमग्ना: सलिले सुशीते विमुक्तपापास्त्रिदिवं प्रयान्ति’
अत: उन्होंने माघ स्नान का संकल्प किया और नर्मदा नदी मे स्नान प्रारम्भ कर दिया ।नौ दिनों तक नियमपूर्वक स्नान करके दसवें दिन उन्होंने अपने प्राण त्याग दिये।माघ स्नान के फलस्वरूप उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हुई।