कोकिलाव्रत । Kokila Vrat
कोकिलाव्रत व्रत आषाढ़ मास की पूर्णमासी से आरम्भ कर श्रावण पूर्णिमा तक किया जाता है। यह व्रत इस वर्ष २७ जुलाई, २०१८ (शुक्रवार) से आरम्भ होगा एवं २६ अगस्त (रविवार) को पूर्ण होगा। इस व्रत को करने वाली स्त्रियाँ सदा सुहागन रहती है। उन्हे सुख, सम्पत्ति, पुत्र तथा पति का स्नेह प्राप्त होता है।
व्रत के नियम:-
ब्रह्मचर्य का पालन करें ।
सुर्योदय से पहले उठकर स्नान करें।
सात्त्विक भोजन ग्रहण करें।
भूमि पर शयन करें।
प्राणियों पर दया भाव रखें।
केवल रात्रि में ही अन्न-ग्रहण करें।
पूजन सामग्री:-
काले तिल (कोकिला पक्षीकी मूर्ति बनाने के लिये)
रक्त चंदन
चम्पा के पुष्प
धूप
दीप
नैवेद्य
तिल
अक्षत
दूर्वा
सिंदूर
दीप
घी
स्नान के लिये:-
सुगंधित तेल
तिल और आँवले का उबटन
सर्वौषधियों का उबटन
वच का उबटन
व्रत विधि:-
व्रत करनेवाली स्त्री आषाढ़ मास की पूर्णिमा को शाम के समय स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण करे। पूजा गृह में आसन पर बैठ जाये और हाथ में जल लेकर इस व्रत का संकल्प करे:-
‘ मैं, ........( अपना नाम लें), ... निवासी ( अपने शहर तथा पलाट न../ फ्लैट न., स्थान का नाम लें), आषाढ़ पूर्णिमा तिथि, ..... वार ( जो भी वार हो उसका नाम लें तथा तिथि का नाम लें), वर्ष.... ( वर्ष का नाम लें). ... माह (महीने का नाम लें) को यह संकल्प लेती हूँ कि श्रावण मासभर नित्य-स्नान, रात्रि-भोजन और भूमि शयन करूँगी तथा ब्रह्मचर्य से रहूँगी और प्राणियों पर दया करूँगी।’
इसके बाद जल को भूमि पर छोड़ दें। हाथ जोड़कर माता को प्रणाम करें।
अगले दिन प्रात: उठकर सब सामग्री लेकर नदी, तालाब आदि पर जाय । वहाँ दंतधावन कर सुगंधित द्रव्य(तेल), तिल और आँवले का उबटन लगाये और विधि से स्नान करे। इस प्रकार आठ दिन तक स्नान करे। उसके बाद अगले आठ दिन तक सर्वौषधियों का उबटन लगाकर स्नान करे। शेष १५ दिनों मे वचका उबटन मलकर स्नान करे। स्नान के बाद प्रतिदिन सुर्य भगवान का ध्यान करे। इसके बाद काले तिल पीस करके उससे कोकिला पक्षीकी मूर्ति बनावें। रक्त चंदन, चम्पा के पुष्प, पत्र, धूप, दीप, नैवेद्य, तिल, चावल, दूर्वा आदि से कोकिला का पूजन करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर इस मंत्र से प्रार्थना करे:-
तिलसहे तिलसौख्ये तिलवर्णे तिलप्रिये।
सौभाग्यद्रव्यपुत्रांश्च देहि मे कोकोले नम:॥
इस प्रकार पूजन कर घर में आकर भोजन ग्रहण करे( दिन में फल, दूध और रात्रि को अन्न)। इस विधि से एक मास व्रत कर अंत में तिलपिष्टकी कोकिला बनाकर उसमें रत्न के नेत्र और सुवर्ण के पंख लगाकर ताम्रपत्र में स्थापित करे। दक्षिणा सहित वस्त्र, धान्य और गुड़ ससुर, दैवज्ञ,पुरोहित अथवा किसी ब्राह्मण को दान करे।