करवीर व्रत
ज्येष्ठ शुक्ल प्रतिपदा को करवीर व्रत किया जाता है। यह व्रत १४ जून, २०१८ (बृहस्पतिवार) को है। यह व्रत तत्काल फल देता है। इस व्रत को करनेवाला सभी सुखों को भोग कर अंत में सुर्यलोक को जाता है। इस व्रत को करने से सभी प्रकार का संकट नष्ट हो जाता है। सुर्यदेव की प्रसन्नता के लिये इस व्रत को अरुंधती, सावित्री, सरस्वती, गायत्री, गंगा, दमयंती, अनसूया और सत्यभामा आदि पतिव्रता स्त्रियों ने इस व्रत को किया था।
व्रत के दिन सुर्योदय से पहले उठकर स्नानादि नित्य कर्म से निवृत हो जायें। स्वच्छ वस्त्र पहन कर सभी पूजन सामग्री के साथ किसी उद्यान में करवीर-वृक्ष (कनेर वृक्ष) के पास जायें। सर्वप्रथम वृक्ष के पास सफाई कर जल से शुद्ध कर लें। उसके बाद वृक्ष को शाखाओं सहित स्नानार्थ जल अर्पित करें। लाल वस्त्र अर्पित करें। गंध, पुष्प, धूप, दीप एवं नैवेद्य अर्पित करें। किसी पात्र में सप्तधान्य, नारिकेल, नारंगी, केला, बिजौरा एवं भाँति-भाँति के फला रखकर वृक्ष को अर्पित करें। पूजन के बाद दोनों हाथ जोड़कर निम्न मंत्र से वृक्ष की प्रार्थना करे-
करवीर विषावास नमस्ते भानुवल्लभ्।
मौलिमण्डनसद्रत्न नमस्ते केशवशयो:॥
अर्थ:-“भगवान् विष्णु और शंकर के मुकुटपर रत्न के रूप में सुशोभित, भगवान सुर्य के अत्यन्त प्रिय तथा विष के आवास करवीर (जहर कनेर)! आपको बार-बार नमस्कार है।”
इसके बाद निम्न मंत्र के द्वारा ब्राह्मण को दक्षिणा दे
‘आ कृष्णेन रजसा वर्तमानो निवेशयन्न्मृतं च् । हिरण्ययेन सविता रथेना देवो याति भुवनानि पश्यन् ॥’
दक्षिणा के बाद वृक्ष की प्रदक्षिणा करें। सुर्य भगवान की पूजा करें एवं व्रत रखें। अगले दिन व्रत खोलें।
इस करवीर व्रत को जो भक्तिपूर्वक करता है, वह अनेक प्रकार के सुख भोग कर अंत में सुर्यलोक को जाता है।