कबीर जयंती
ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को कबीर जयंती मनाया जाता है। उनका जन्म संवत् 1455 ज्येष्ठ शुक्ल पूर्णिमा को हुआ था। नीरु और नीमा नामक जुलाहे दम्पत्ति को वे काशी के लहरतारा कुंड के निकट लावारिस मिले थे। उन्होंने कबीर को उठाकर उनका पालन पोषण किया। आज भी युगावतार कबीर एक आदर्श प्रतीक के रूप में जाने जाते हैं। वे चाहते थे कि साम्प्रदायिक कटुताओं को दूर हटाकर जन-मानस को प्राज्वल बनाया जाय, जइससे प्रेम तथा भातृत्त्व भाव का प्रसार हो और वातावरण में शांति और सौम्यता छा जाय। परमात्मा में सच्ची लगन और प्राणी- मात्र के साथ निष्कपट व्यवहार ही सत्य धर्म का सार है। वे निर्गुण ब्रह्म के उपासक थे और जाति-प्रथा के घोर विरोधी।
कबीर के कुछ दोहे:
पोथी पढ़ी- पढ़ी जग मुआ, पंडित भया न कोय।
ढ़ाई आखर प्रेम का, पढ़ै सो पंडित होय॥
बुरा जो देखन मैं चला, बुरा न मिलिया कोय।
जो दिल खोजा आपना, मुझसे बुरा न कोय।
तिनका कबहुं ना निन्दिये, जो पाँवन तर होय।
कबहुं उड़ी आँखिन पड़े, तो पीर घनेरी होय।
जाति न पूछो साधु की, पूछ लीजिये ज्ञान।
मोल करो तरवार का, पड़ा रहन दो म्यान।
बोली एक अनमोल है, जो कोई बोलै जानि।
हिये तराजू तौलि के, तब मुख बाहर आनि।
कबिरा खड़ा बाज़ार में, मांगे सबकी खैर।
ना काहू से दोस्ती, न काहू से बैर।