फागुन कृष्ण पक्ष चतुर्थी कथा -

बहू कहने लगी – “हे पिताजी ! आप धन्य हैं, आपकी कृपा से ही गणेशजी प्रसन्न हुए हैं। मेरी दरिद्रता दूर हुई, घर में अतुल्य सम्पत्ति आयी और आपकी कृपा से भी धन्य हुई।”
इस प्रकार वह ससुर से बार-बार कहने लगी। अब छोटी बहू के घर में अपार सम्पत्ति देखकर अन्य सभी बहुओं के क्रोध की सीमा न रही।
उन्होंने कहा कि बूढ़े ने अपने सम्पूर्ण संचित धन छोटी बहू को दे डाला है।
बंधुओं के पारस्परिक कलह को देखकर विष्णुशर्मा डरकर कहने लगे कि इसमें मेरा कोई दोष नहीं है।
केवल इस व्रत के प्रभाव से गणेश जी ने प्रसन्न होकर छोटी बहू को कुबेर जैसी सम्पत्ति प्रदान की है।
विष्णुशर्मा ने कहा- “हे बहुओं! मैंन पहले तुम्हारे यहाँ जाकर व्रतानुष्ठान का अनुरोध किया था। परंतु तुमलोगों ने मुझे दुत्कार दिया। जबकि छोटी बहू भी ने असमर्थ होते हुए भिक्षा मांगकर पूजन सामग्री जुटाई। इस कारण से श्री गणेशजी ने प्रसन्न होकर इसे सम्पत्ति प्रदान की है। ”

गणेश जी कहते हैं- “हे गिरिराजकुमारी ! उस ब्राह्मण के छहों पुत्र दरिद्र, रोगी और दु:खी हो गये।
केवल छोटा पुत्र ही इंद्र के समान भाग्यशाली बन बैठा।” वे छहों पुत्र ने भी अगले वर्ष से आपस में होड़ करते हुए फाल्गुन कृष्ण गणेश चतुर्थी का व्रत करने लगे। इस व्रत के प्रभाव से वह सब भी क्रमश: धनवान बनते गये। इसी प्रकार दूसरे लोग जो भी इस व्रत को करेंगे उनका घर दहन-धान्य से भरा पूरा रहेगा।
श्रीकृष्ण जी कहते हैं कि हे पुरुषोत्तम युधिष्ठिर! गणेश चतुर्थी व्रत के प्रभाव से राज्य की कामना वाले को राज्य की प्राप्ति होती है। इसलिये हे राजन! आप भी इस व्रत को शीघ्र ही किजिये। फलस्वरूप आप कष्टों से छूटकर राज्यका सुखोपभोग करने लगेंगे ।
श्रीकृष्ण जी के मुख से इस कथा को सुनकर युधिष्ठिर बहुत प्रसन्न हुए और यह व्रत करके गणेश जी की कृपा से अखण्ड राज्य के अधिकारी हुए।