बुद्ध द्वादशी व्रत

श्रावण मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को बुद्ध द्वादशी व्रत होता है । इस तिथि को भगवान बुद्ध की पूजा की जाती है । इस व्रत को करनेवाले को राज्य सुख की प्राप्ति होती है। व्रती मनुष्य की द्वादशी देवी हमेशा रक्षा करती है।

बुद्ध द्वादशी व्रत पूजा सामग्री:-

∗श्रीहरि की मूर्ति
∗कलश- 4
∗वस्त्र- 3
∗चौकी
∗पात्र- 4
∗तिल
∗धूप
∗दीप
∗अक्षत
∗चंदन
∗पुष्प
∗पुष्पमाला
∗नैवेद्य

बुद्ध द्वादशी व्रत विधि:-

श्रावण मास की दशमी तिथि को नियमपूर्वक भगवान श्री हरि का पूजन करें । उस समय पवित्र वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक हवन करें । प्रसन्न मन से रहकर व्रती पुरुष को भली-भाँति सिद्ध किया हुआ हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिये। फिर कम-से-कम पाँच पग दूर जाकर अपने पैर धोये। पुन: प्रात: काल उठकर शौच के बाद आठ अंगुलकी लम्बी दतुअन से मुख को शुद्ध करें । दतुअन के लिये किसी दूधवाले वृक्ष का लकड़ी उपयोग करे। इसके बाद विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। शरीर के नौ द्वार हैं, उन सभी द्वारों को स्पर्श कर फिर भगवान् जनार्दन का ध्यान करे। ध्यान का प्रकार यह है

इस प्रकार कहकर दिनमें नियमपूर्वक उपवास करे। रात्रि के समय देवाधिदेव भगवान नारायण के समीप बैठकर ‘ऊँ नमो नारायणाय’ इस मंत्र का जप कर व्रती को सो जाना चाहिये। फिर प्रात:काल होनेपर व्रती पुरुष समुद्रतक जानेवाली नदी अथवा दूसरी भी किसी नदी या तालाबपर जाकर अथवा घर पर सन्यमपूर्वक रहकर हाथ में पवित्र मिट्टी लेकर यह मंत्र पढ़े

फिर जल के देवता वरुणसे प्रार्थना करे-

इस प्रकार का विधान सम्पन्नकर मिट्टी और जल हाथमें ले अपने सिर पर लगाये। साथ ही शेष बची हुई मृतिका को तीन बार समस्त अंगों में लगाये । फिर उपर्युक्त वारुण मंत्र पढ़कर विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान करने के पश्चात संध्या-तर्पण आदि नित्य-नियम सम्पन्न कर देवालय या फिर घर में बने पूजा गृह में जाये ।
सभी पूजन सामग्री एकत्रि कर लें। आसन पर बैठ जाये। हाथ में अक्षत, कुंकुम, रोली एवं पुष्प लेकर भगवान बुद्ध की निम्न मंत्रों से पूजन करें:-
∗ऊँ दामोदराय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के चरण की पूजा करें ।
∗ऊँ ह्रषीकेशाय नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के कटिभाग की पूजा करें ।
∗ऊँ सनातनाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के उदर की पूजा करें ।
∗ऊँ श्रीवत्सधारिणे नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के छाती की पूजा करें ।
∗ऊँ चक्रपाणये नम: ( हाथ के रोली, पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के भुजाएँ की पूजा करें ।
∗ऊँ हरये नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के कण्ठ की पूजा करें ।
∗ऊँ मश्चुकेशाय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के सिर की पूजा करें ।
∗ऊँ भद्राय नम: ( हाथ के रोली,पुष्प आदि समर्पित करें ) श्रीहरि के शिखा की पूजा करें ।

इस प्रकार सम्यक् रीति से पूजा कर पहले के ही समान कलश स्थापित करे और दो वस्त्रों से उसे आच्छादित कर उसके ऊपर सम्पूर्ण संसार को अपने उदर में धारण करने की शक्तिवाले देवेश्वर भगवान श्रीहरि की सुवर्णमयी प्रतिमा स्थापित करे। फिर विधान के अनुसार गन्ध, पुष्प, आदि से क्रमश: पूजन करे। तत्पश्चात् वेद और वेदांग के पारगामी ब्राह्मण को वह प्रतिमा दे। हे मुने! यह विधि श्रावण मास की एकादशी व्रत की कही गयी है। इस प्रकार नियम के साथ यदि व्रत किया जाय तो उसका जो प्रभाव होता है उसे कहता हूँ सुनो।