श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी व्रत

ज्येष्ठ मास के शुक्लपक्ष की द्वादशी तिथि को श्रीराम द्वादशी व्रत होता है। इस वर्ष यह व्रत २४ जून (रविवार), २०१८ को है। इस तिथि को भगवान श्री राम जी की पूजा की जाती है। इस व्रत के प्रभाव से नि:संतान मनुष्य को संतान सुख की प्राप्ति होती है। इस व्रत को करनेवाले पुरुष स्वर्ग में विविध भोगों को भोगता है। वहाँ की अवधि समाप्त हो जाने पर वह पुन: मृत्य लोक में आता है। पृथ्वी पर आने पर वह सौ यज्ञ करनेवाला राजा होता है। जो इस व्रत को निष्काम भाव से करता है, उस पुरुष के समस्त पाप समाप्त हो जाते हैं।

श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी व्रत पूजा सामग्री:-

श्रीरामसहितलक्ष्मण जी की मूर्ति
कलश- 4
वस्त्र- 3
चौकी
पात्र- 4
तिल
धूप
दीप
अक्षत
चंदन
पुष्प
पुष्पमाला
नैवेद्य

श्रीरामलक्ष्मण द्वादशी व्रत विधि:-

ज्येष्ठ मास की दशमी तिथि को नियमपूर्वक भगवान श्री हरि का पूजन करें। उस समय पवित्र वस्त्र धारण कर विधिपूर्वक हवन करें । प्रसन्न मन से रहकर व्रती पुरुष को भली-भाँति सिद्ध किया हुआ हविष्यान्न ग्रहण करना चाहिये। फिर कम-से-कम पाँच पग दूर जाकर अपने पैर धोये। पुन: प्रात: काल उठकर शौच के बाद आठ अंगुलकी लम्बी दतुअन से मुख को शुद्ध करें । दतुअन के लिये किसी दूधवाले वृक्ष का लकड़ी उपयोग करे। इसके बाद विधिपूर्वक आचमन करना चाहिये। शरीर के नौ द्वार हैं, उन सभी द्वारों को स्पर्श कर फिर भगवान् जनार्दन का ध्यान करे। ध्यान का प्रकार यह है-

इस प्रकार कहकर दिन में नियमपूर्वक उपवास करे। रात्रि के समय देवाधिदेव भगवान नारायण के समीप बैठकर ‘ऊँ नमो नारायणाय’ इस मंत्र का जप कर व्रती को सो जाना चाहिये। फिर द्वादशी तिथि को प्रात:काल होनेपर व्रती पुरुष समुद्र तक जानेवाली नदी अथवा दूसरी भी किसी नदी या तालाब पर जाकर अथवा घर पर सन्यमपूर्वक रहकर हाथ में पवित्र मिट्टी लेकर यह मंत्र पढ़े-

क्रमश:

इस प्रकार का विधान सम्पन्नकर मिट्टी और जल हाथमें ले अपने सिर पर लगाये। साथ ही शेष बची हुई मृतिका को तीन बार समस्त अंगों में लगाये । फिर उपर्युक्त वारुण मंत्र पढ़कर विधिपूर्वक स्नान करे। स्नान करने के पश्चात संध्या-तर्पण आदि नित्य-नियम सम्पन्न कर देवालय या फिर घर में बने पूजा गृह में जाये ।
सभी पूजन सामग्री एकत्रि कर लें। आसन पर बैठ जाये। हाथ में अक्षत, कुंकुम, रोली एवं पुष्प लेकर श्रीराम जी की निम्न मंत्रों से पूजन करें:-

क्रमश:

इसके बाद सामने चार जलपूर्ण कलश स्थापित करे। उन कलशोंको मालाओं से अलंकृत कर उनपर तिल से भरे पात्र रखे । इन चार कलशों को चार समुद्र मानकर उनके मध्यभाग में एक चौकी को स्थापित करें। उस चौकी के ऊपर भगवान श्रीराम सहित लक्ष्मण जी की सुवर्ण की मूर्ति स्थापित करें। दो वस्त्र अर्पित करें । तत्पश्चात् पुष्प,चंदन एवं अर्घ्य आदि उपचारों से पूजा करे। द्वादशी की कथा सुने।भगवान् के सामने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक पूरी रात जागरण करे । प्रात:काल सुर्योदय होनेपर स्नान कर, पूजा करें । उसके बाद वह प्रतिमा और दक्षिणा ब्राह्मण को दे । उसके बाद भोजन करें।