Prarambh Ki Katha- प्रारंभ की कथा
दक्षिण देश में महिलारोप्य नाम का एक नगर है। वहाम धर्म से महाधन उपार्जन (धन कमाने वाला ) करने वाला वर्धमान नाम का एक वणिक्-पुत्र( बनिया का बेटा) रहता था । उसको एक समय रात्रि में खाट में लेटे हुए चिन्ता हुई; कि ‘बहुत धन उत्पन्न होने पर भी धन प्राप्ति का उपाय सोचना चाहिये’ कहा भी है- ऐसी कोई वस्तु नहीं है जो अर्थ से सिद्ध ना होती हो, इस कारण बुद्धिमान यत्न से अर्थ(धन) का उपार्जन ( कमाना) करते रहे। जिसके धन है उसके मित्र हैं, जिसके धन है उसी के बंधु ( रिश्तेदार) हैं, जिसके धन है लोक में वही पुरुष है, जिसके धन है वही पंडित है। न वह विद्या है, न वह दान है, न वह कारीगरी है, न वह कला है, न वह धनियों की स्थिरता है, जिसको याचक न गाते हो। इस लोक में धनियों के गैर भी रिश्तेदार होते हैं, दरिद्रोंके रिश्तेदार भी दुर्जन हो जाते हैं।जैसे पर्वत से नदिया निकल कर सब कार्य पूर्ण करती है। उसी प्रकार धन के बढ़ने से और इध-उधर इकट्ठे होने से सब कार्य पूर्ण होते हैं।यह प्रभाव धन का ही हैं कि अपूज्य भी पूजे जाते हैं, अगम्य के निकट जाया जाता है ,अनमस्कारी पुरुष की भी वंदना की जाती है। जिस प्रकार भोजन करने से सब इंद्रिय समर्थ होती है उसी प्रकार धन से सब कार्य होता है इसलिए धन को सबका साधन कहा जाता है। धन होने से वृद्ध भी युवा लगते हैं जबकि धनहीन मनुष्य युवावस्था में ही वृद्ध दीखने लगते हैं। धन को छः उपायों से कमाया जाता है---भिक्षा, राजसेवा, खेती, विद्या, सूद और व्यापार से । इनमें से व्यापार का साधन सर्वश्रेष्ठ है । व्यापार के भी कई प्रकार हैं – गंधद्र्व्य का व्यावसाय, रूपये ब्याज पर देना, कम मूल्य पर सामान खरीद कर अधिक मूल्य पर बेचना, सामान गिरवी रखना,। उनमें से सबसे अच्छा यही है कि परदेस से उत्तम वस्तुओं का संग्रह करके स्वदेश में उन्हें बेचा जाय । इस प्रकारसोचकर वर्धमान ने बाहर जाने का निश्चय कर अपने गुरुजनों की आज्ञा ले मथुरा जाने वाले मार्ग के लिए उसने अपना रथ तैयार करवाया । उस रथ में दो भारवाहक बैल संजीवक और नन्दक लगवाए। यमुना के किनारे नदी-तट की दलदल में संजीवक बैल फँस गया । वहाँ से निकलने की चेष्टा में उसका एक पैर भी टूट गया । यह देख कर वणिक वर्धमान को बड़ा दुःख हुआ । तीन रात तक उसने बैल के स्वस्थ होने की प्रतीक्षा की । तब उसके साथियों ने कहा "ओ सेठ! क्यूँ इस बैल के लिए तुम सिंह और बाघ जैसे अनेक हिंसक जन्तु वाले वन में रहकर अपना और अपने साथियों का जीवन खतरे में डाल रहे हो। संजीवक के अच्छा होने में बहुत दिन लग जायंगे । इतने दिन यहाँ रहकर प्राणों का संकट नहीं उठाया जा सकता । इस बैल के लिये अपने जीवन को मृत्यु के मुख में क्यों डालते हैं ?" कहा भी गया है- ‘बुद्धिमान पुरुष छोटी चीजों के लिये बड़ी वस्तुओं का नाश नहीं करते। छोटी वस्तु छोड़कर बड़ी वस्तु का रक्षा करना हीं बुद्धिमता है।’ तब वर्धमान ने संजीवक बैल की रक्षा के लिए रखवाले रखकर अन्य साथियों के साथ आगे की ओर चल पड़ा । रखवाले ने भी जब देखा कि जंगल अनेक शेर-बाघ-चीतों से भरा पड़ा है तो वे भी एक-दो दिन बाद ही वहाँ संजीवक बैल को छोड़कर चल दिये और वर्धमान के सामने यह बोल दिया "हे स्वामी ! संजीवक तो मर गया । हमने उसका अग्नि-संस्कार कर दिया ।" वर्धमान को यह सुनकर बड़ा दुःख हुआ । इधर, संजीवक यमुना-तट की शीतल वायु के सेवन से कुछ हीं दिनों में स्वस्थ हो गया । यमुना के किनारे की दूब के टुंगों( अग्रभाग) को निरन्तर खाने से महादेव के नदी के समान बलशाली हो गया। प्रतिदिन नदी के किनारे बने हुये बाँबी को सींगों से पाटना और मदमत्त होकर गरजते हुए किनारों की झाड़ियों में सींग उलझाकर खेलना ही उसका काम था । एक समय पिंगलक नाम का सिंह, जानवरों के समूहों से घिरा हुआ , प्यास से व्याकुल उसी यमुना तट पर पानी पीने आया । वहाँ उसने (सिंह) दूर से ही संजीवक की गम्भीर हुंकार सुनी । उसे सुनकर वह भयभीत हो कर बिना जल पिये हीं अपने समूह में सिमट कर जा छिपा । पिंगलक सिंह के झुण्ड में मंत्री-पुत्र करटक और दमनक नाम वाले दो गीदड़ भी रहते थे । ये दोनों हमेशा सिंह के पीछे़ पीछे़ रहते थे । उन्होंने जब अपने स्वामी को भयभीत देखा तो आश्चर्य में पड़ गए । आज तक पिंगलक कभी इस तरह भयभीत नहीं हुआ था । दमनक ने अपने साथी गीदड़ को कहा -’करटक ! हमारा स्वामी प्यासा होकर भी पानी पीने के लिए यमुना-तट तक जाकर लौट आया; इस डर का कारण क्या है ?" करटक ने कहा - "दमनक ! इस बात से हमें क्या ? अपने काम के सिवा जो दूसरे के काम में दखल देता है वह खीला खींचने( लकड़ी का खूंटा) वाले बन्दर की तरह तड़प-तड़प कर मरता है, ।" दमनक ने पूछा - "यह कैसे ?" करटक ने कहा -